मैं बुरा ही सही भला न सही; पर तेरी कौन सी जफ़ा न सही; दर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रे; गर उन्हों ने नहीं सुना न सही; शब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो है; नाला-ए-दिल मेरा रसा न सही; दिल भी अपना नहीं रहा न रहे; ये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सही; क्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेरा; चलो बे-जा सही ब-जा न सही; उक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मत; न खुला तुझ से ऐ सबा न सही; वाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है 'ऐश'; हम ने माना वो पारसा न सही। |
खुलेगी इस नज़र पे... खुलेगी इस नज़र पे चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता; किया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ता; कोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती है; कठिन हो राह तो छूटता है घर आहिस्ता आहिस्ता; बदल देना है रास्ता या कहीं पर बैठ जाना है; कि थकता जा रहा है हमसफ़र आहिस्ता आहिस्ता; ख़लिश के साथ इस दिल से न मेरी जाँ निकल जाये; खिंचे तीर-ए-शनासाई मगर आहिस्ता आहिस्ता; मेरी शोला-मिज़ाजी को वो जंगल कैसे रास आये; हवा भी साँस लेती हो जिधर आहिस्ता आहिस्ता। |
तू इस क़दर मुझे... तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है; तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है; जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार; वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है; हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा; ना कोई गैर, ना कोई रक़ीब लगता है; ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहते ये खुलूस; कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है; उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा; मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है; ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो; बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है। |
जागती रात अकेली... जागती रात अकेली-सी लगे; ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे; रुप का रंग-महल, ये दुनिया; एक दिन सूनी हवेली-सी लगे; हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे; शायरी तेरी सहेली-सी लगे; मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल; मुझ को हर रात नवेली-सी लगे; रातरानी सी वो महके ख़ामोशी; मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे; फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची; ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे। |
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला; किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला; ग़ज़ाल-ए-अश्क सर-ए-सुब्ह दूब-ए-मिज़गाँ पर; कब आँख अपनी खुली और लहू लहू न मिला; चमकते चाँद भी थे शहर-ए-शब के ऐवाँ में; निगार-ए-ग़म सा मगर कोई शम्मा-रू न मिला; उन्ही की रम्ज़ चली है गली गली में यहाँ; जिन्हें उधर से कभी इज़्न-ए-गुफ़्तुगू न मिला; फिर आज मय-कदा-ए-दिल से लौट आए हैं; फिर आज हम को ठिकाने का हम-सबू न मिला। |
महक उठा है आँगन... महक उठा है आँगन इस ख़बर से; वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से; जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम; दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे; मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था; उतारे कौन अब दीवार पर से; गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की; मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से; उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद; हमारी चाँदनी छाए तो तरसे; मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान; कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से। |
ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई; इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई; ये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री; दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोई; हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचा; आपकी तरह से मेहमान बुलाए कोई; तर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसे; करके एहसान, न एहसान जताए कोई; क्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़; मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोई; सर्द -मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्द; रखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोई; आपने दाग़ को मुँह भी न लगाया, अफ़सोस; उसको रखता था कलेजे से लगाए कोई। |
जिन्दगी में दो मिनट जिन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा; आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे; कोई तोहफा ना मिला आज तक मुझे; और आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे; तरस गया मैं किसी के हाथ से दिए एक कपडे को; और आज नये-नये कपडे ओढ़ाए जा रहे थे; दो कदम साथ ना चलने वाले; आज काफिला बन कर चले जा रहे थे; आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है; हम तो अब तक यूँ ही जिए जा रहे थे। |
कभी अकेले में मिल... कभी अकेले में मिल कर झंझोड़ दूंगा उसे; जहाँ-जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे; मुझे छोड़ गया ये कमाल है उस का; इरादा मैंने किया था के छोड़ दूंगा उसे; पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज; कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे; मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को; समझ रही थी के ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे; बचा के रखता है खुद को वो मुझ से शीशाबदन; उसे ये डर है के तोड़-फोड़ दूंगा उसे। |
ज़रा-सी देर में... ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा; ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा; न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं; हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा; सफ़ीना हो के हो पत्थर, हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़; तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा; समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं; अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा; मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको; किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा। |