करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे... करूँ ना याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे; गज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे; वो ख़ार-ख़ार है शाख-ए-गुलाब की मानिंद; मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे; ये लोग तज़किरे करते हैं अपने प्यारों के; मैं किससे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे; जो हमसफ़र सरे मंज़िल बिछड़ रहा है 'फ़राज़'; अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे। |
पुकारती है ख़ामोशी... पुकारती है ख़ामोशी मेरी फुगाँ की तरह; निग़ाहें कहती हैं सब राज़-ए-दिल ज़ुबाँ की तरह; जला के दाग़-ए-मोहब्बत ने दिल को ख़ाक किया; बहार आई मेरे बाग़ में खिज़ाँ की तरह; तलाश-ए-यार में छोड़ी न सरज़मीं कोई; हमारे पाँवों में चक्कर है आसमाँ की तरह; छुड़ा दे कैद से ऐ कैद हम असीरों को; लगा दे आग चमन में भी आशियाँ की तरह; हम अपने ज़ोफ़ के सदके बिठा दिया ऐसा; हिले ना दर से तेरे संग-ए-आसताँ की तरह। |
ऐसे चुप है... ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे; तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे; अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ; रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे; कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे; याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे; मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं; अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे; आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं 'फ़राज़'; चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे। |
साकी शराब ला... साकी शराब ला कि तबीयत उदास है; मुतरिब रबाब उठा कि तबीयत उदास है; चुभती है कल वो जाम-ए-सितारों की रोशनी; ऐ चाँद डूब जा कि तबीयत उदास है; शायद तेरे लबों की चटक से हो जी बहाल; ऐ दोस्त मुसकुरा कि तबीयत उदास है; है हुस्न का फ़ुसूँ भी इलाज-ए-फ़सुर्दगी; रुख़ से नक़ाब उठा कि तबीयत उदास है; मैंने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब-ए-महजबीं न जा कि तबीयत उदास है। |
कोई समझाए ये क्या... कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का; आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का; गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों; रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का; चश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है; रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का; अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे मे; ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का; मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल'; इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का। |
जो भी बुरा भला है... जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता है; बंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता है; ये फर्श-ओ-अर्श क्या है अल्लाह जानता है; पर्दों में क्या छिपा है अल्लाह जानता है; जाकर जहाँ से कोई वापिस नहीं है आता; वो कौन सी जगह है अल्लाह जानता है; नेक़ी-बदी को अपने कितना ही तू छिपाए; अल्लाह को पता है अल्लाह जानता है; ये धूप-छाँव देखो ये सुबह-शाम देखो; सब क्यों ये हो रहा है अल्लाह जानता है; क़िस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन क़िस्मत में क्या लिखा है अल्लाह जानता है। |
फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था... फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था; सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था; वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू; मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था; रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही; झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था; ख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़; वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न था; याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'; भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था। |
अपने हाथों की... अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको; मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको; मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने; ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको; ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन; कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।; बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'; शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको। |
मेरी ख़्वाहिश है कि... मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ; माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ; कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर; ऐसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ; सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें; तेरे बारे में न सोचूं तो अकेला हो जाऊँ; चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन; क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ; बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं; शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊँ; शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती; मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ। |
दिन सलीके से उगा... दिन सलीके से उगा रात ठिकाने से रही; दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही; चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखे; जिंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही; इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी; रात, जंगल में कोई शम्मा जलाने से रही; फ़ासला, चाँद बना देता है हर पत्थर को; दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही; शहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगह; अपनी इज्ज़त भी यहाँ हंसने-हंसाने से रही। |