ग़ज़ल Hindi Shayari

  • वही आँखों में और आँखों से पोशिदा भी रहता है,
    मेरी यादों में एक भूला हुआ चेहरा भी रहता है;

    जब उस की सर्द-मेहरी देखता हूँ बुझने लगता हूँ,
    मुझे अपनी अदाकारी का अंदाज़ा भी रहता है;

    मैं उन से भी मिला करता हूँ जिन से दिल नहीं मिलता,
    मगर ख़ुद से बिछड़ जाने का अंदेशा भी रहता है;

    जो मुमकिन हो तो पुर-असरार दुनियाओं में दाख़िल हो,
    कि हर दीवार में एक चोर दरवाज़ा भी रहता है;

    बस अपनी बे-बसी की सातवीं मंज़िल में ज़िंदा हूँ,
    यहाँ पर आग भी रहती है और नौहा भी रहता है।
    ~ Saqi Faruqi
  • अजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में था,
    वो बात करते हुए भी नई उड़ान में था;

    हवा भरी हुई फिरती थी अब के साहिल पर,
    कुछ ऐसा हौसला कश्ती के बादबाँ में था;

    हमारे भीगे हुए पर नहीं खुले वर्ना,
    हमें बुलाता सितारा तो आसमान में था;

    उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का,
    अजीब शहद सा कल रात उस ज़बान में था;

    खुली तो आँख तो 'ताबिश' कमाल ये देखा,
    वो मेरी रूह में था और मैं मकान में था।
    ~ Tabish Kamaal
  • उदास रातों में तेज़ काफ़ी की तल्ख़ियों में,
    वो कुछ ज़ियादा ही याद आता है सर्दियों में;

    मुझे इजाज़त नहीं है उस को पुकारने की,
    जो गूँजता है लहू में सीने की धड़कनों में;

    वो बचपना जो उदास राहों में खो गया था,
    मैं ढूँढता हूँ उसे तुम्हारी शरारतों में;

    उसे दिलासे तो दे रहा हूँ मगर से सच है,
    कहीं कोई ख़ौफ़ बढ़ रहा है तसल्लियों में;

    तुम अपनी पोरों से जाने क्या लिख गए थे जानाँ,
    चराग़ रौशन हैं अब भी मेरी हथेलियों में;

    हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं,
    तुम्हारे ग़म के चराग़ मेरी उदासियों में।
    ~ Syed Wasi Shah
  • कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के;
    वो बदल गए अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के;

    हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा;
    मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के;

    तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है;
    वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधल के;

    कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा;
    जो चिराग़ बुझ गए हैं, तेरी अंजुमन में जल के;

    मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो;
    वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के;

    तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला;
    ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले संभल के।
    ~ Ehsaan Danish
  • महक उठा है आँगन...

    महक उठा है आँगन इस ख़बर से;
    वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से;

    जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम;
    दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे;

    मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था;
    उतारे कौन अब दीवार पर से;

    गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की;
    मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से;

    उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद;
    हमारी चाँदनी छाए तो तरसे;

    मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान;
    कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से।
    ~ Jon Elia
  • कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्किल है;
    यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है;

    इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं;
    के हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है;

    ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा;
    मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल;

    है जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुंजलाकर;
    अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है;

    हज़ारों दिल मसल कर पांओ से झुंजला के फ़रमाया;
    लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है।
    ~ Akbar Allahabadi
  • अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको,
    मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको;

    मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने,
    ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको;

    ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन,
    कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको;

    बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील',
    शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।
    ~ Qateel Shifai
  • निकले हम कहाँ से और किधर निकले;
    हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले;

    तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात;
    तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले;

    बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार;
    जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले;

    अब संभले के चले 'ज़हर' और सफ़र की सोच;
    ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले;

    तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता;
    पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।
  • प्यार करने की यह इस दिल को सज़ा दी जाए;
    उसकी तस्वीर सरे-आम लगा दी जाए;

    ख़त में इस बार उसे भेजिये सूखा पत्ता;
    और उस पत्ते पे इक आँख बना दी जाए;

    इतनी पी जाए कि मिट जाए मन-ओ-तू की तमीज़;
    यानि ये होश की दीवार गिरा दी जाए;

    आज हर शय का असर लगता है उल्टा यारो;
    आज `शहज़ाद' को जीने की दुआ दी जाए।
    ~ Farhat Shahzad
  • आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती;
    यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती;

    अब उम्र, ना मौसम, ना रास्‍ते के वो पत्‍ते;
    इस दिल की मगर ख़ाम ख्‍़याली नहीं जाती;

    माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ;
    तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती;

    मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से;
    पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती;

    हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में
    अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती;

    हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी;
    तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती।
    ~ Syed Wasi Shah