हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है; कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना! *अहवाल: परिस्थिति |
इतनी मुद्दत बाद मिले हो कुछ तो दिल का हाल कहो, कैसे बीते हम बिन प्यारे इतने माह-ओ-साल कहो; रूप को धोखा समझो नज़र का या फिर माया-जाल कहो, प्रीत को दिल का रोग समझ लो या जी का जंजाल कहो! *माह-ओ-साल: महीने और बरस |
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा; मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है! |
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन; दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है! |
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन, कोई तस्वीर गाती रही रात भर; फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले, कोई किस्सा सुनाती रही रात भर! *पैरहन: वस्त्र *सबा: सुबह की हवा |
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो, दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो; आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में, कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो! |
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार; एक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है! *हिज्र: जुदाई *वस्ल: मिलन *दरकार: आवश्यकता |
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'; क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना! *गाहे: कभी |
भीड़ तन्हाइयों का मेला है; आदमी आदमी अकेला है! |
मिट्टी ख़राब है तेरे कूचे में वर्ना हम; अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे! |