अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं; अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या! |
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन; जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है! |
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ; आँखें मेरी भीगी हुई चेहरा तेरा उतरा हुआ! |
जब से छूटा है गुलिस्ताँ हम से; रोज़ सुनते हैं बहार आई है! *गुलिस्ताँ: फूलों का बगीचा |
हमें तो ख़ैर बिखरना ही था कभी न कभी; हवा-ए-ताज़ा का झोंका बहाना हो गया है! |
सब्र ऐ दिल कि ये हालत नहीं देखी जाती; ठहर ऐ दर्द कि अब ज़ब्त का यारा न रहा! *ज़ब्त: सहन |
एक दो ज़ख़्म नहीं जिस्म है सारा छलनी; दर्द बे-चारा परेशान है कहाँ से निकले! |
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए; तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए! |
तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा; ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा! |
उल्फ़त का है मज़ा कि 'असर' ग़म भी साथ हों; तारीकियाँ भी साथ रहें रौशनी के साथ! *तारीकियाँ: अंधेरा |