ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन; सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर! *मुख़ालिफ़: विरोधी *शय: चीज़ |
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप; और ये रात अपनी चादर है! *पैरहन: पहनने के कपड़े |
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा, ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है; बुत भी रखे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं, दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है! *बुत: मूर्तियों *अदा: चुकाना |
हम तो रात का मतलब समझें ख़्वाब, सितारे, चाँद, चिराग; आगे का अहवाल वो जाने जिस ने रात गुज़ारी हो! *अहवाल: परिस्थिति |
शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया; अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम! |
इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर, जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था; हर एक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला, ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था! *सिफ़ात: खूबी *लुत्फ़: कृपा |
बहाना मिल न जाए बिजलियों को टूट पड़ने का; कलेजा काँपता है आशियाँ को आशियाँ कहते! *आशियाँ: घर |
गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक़ से दरिया; लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता! |
ये जो सिर नीचे किए बैठे हैं; जान कितनों की लिए बैठे हैं! |
इत्तेफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह; ख़ुद बनाता है जहाँ में आदमी अपनी जगह! |