ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो; मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी! |
यूँ लगे दोस्त तेरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना; जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना! |
तुझ से बिछड़ना कोई नया हादसा नहीं; ऐसे हज़ारों क़िस्से हमारी ख़बर में हैं! |
क़ुर्बतें लाख ख़ूबसूरत हों; दूरियों में भी दिलकशी है अभी! |
वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'; कि मेरे बाद सितारे कहेंगे अफ़्साने! |
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे; तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे! |
नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम; ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम! *बरपा: होना |
अब तो चुप-चाप शाम आती है; पहले चिड़ियों के शोर होते थे! |
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए; तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया! |
उस गली ने ये सुन के सब्र किया; जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं! |