हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है, दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है; करते हैं जिस पे तान कोई जुर्म तो नहीं, शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है! *इकराम: इनाम *दुश्नाम: अपशब्द |
कुछ उसूलों का नशा था कुछ मुक़द्दस ख़्वाब थे; हर ज़माने में शहादत के यही अस्बाब थे! |
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ; मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या! *तपाक: जोश *यकसर: बिलकुल |
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का; मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में! |
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर; और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया! |
एक बोसे के भी नसीब न हों; होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों! *बोसे: चुम्बन |
जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है, संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रखा है; उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी, नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है! |
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल; ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था! *फ़क़त: केवल |
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है; हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है! |
ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक; मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे! *अदा-ए-बे-नियाज़ी: लापरवाही की हवा |