मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं; फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं! |
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ; गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं! |
मेरी क़िस्मत में ग़म अगर इतना था; दिल भी या-रब कई दिए होते! |
वो अक्स बनके मेरी चश्म-ए-तर में रहता है; अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है! |
दर्द हो दिल में तो दवा कीजिये; और जो दिल ही न हो तो क्या कीजिये! |
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से; कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता! |
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना; मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने! |
आज की रात भी तन्हा ही कटी; आज के दिन भी अंधेरा होगा! |
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल; उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती! *शहरियत: सभ्यता, शिष्टता, नागरिकता। |
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की; मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई! |