ग़ज़ल Hindi Shayari

  • कोई समझाए ये...

    कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का;
    आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का;

    गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों;
    रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का;

    चश्म-ए-साकी मुझे हर गम पे याद आती है;
    रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का;

    अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे में;
    ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का;

    मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल';
    इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का।
    ~ Allama Iqbal
  • आफत की शोख़ियां हैं...

    आफत की शोख़ियां हैं तुम्हारी निगाह में;
    मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में;

    वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं;
    मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी कि निगाह में;

    आती है बात बात मुझे याद बार बार;
    कहता हूं दौड़ दौड़ के कासिद से राह में;

    इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर;
    जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में;

    मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे;
    ऐ 'दाग़' तुम तो बैठ गये एक आह में।
    ~ Daagh Dehlvi
  • झूठा निकला...

    झूठा निकला क़रार तेरा;
    अब किसको है ऐतबार तेरा

    ; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं;
    देखा बस हम ने प्यार तेरा;

    दम नाक में आ रहा था अपने;
    था रात ये इंतज़ार तेरा;

    कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे;
    मेरा क्या, इख्तियार तेरा;

    लिपटूँ हूँ गले से आप अपने;
    समझूँ कि है किनार तेरा;

    'इंशा' से मत रूठ, खफा हो;
    है बंदा जानिसार तेरा।
    ~ Insha Allah Khan Insha
  • वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का...

    वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा;
    इसी तरह से ज़माने को आज़माए जा;

    किसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहीं;
    जिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सिर झुकाए जा;

    वो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल से;
    वफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जा;

    नज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकती;
    नज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जा;

    ख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखें;
    है आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जा;

    वफ़ा का ख़्वाब है 'एहसान' ख़्वाब-ए-बे-ताबीर;
    वफ़ाएँ कर के मुक़द्दर को आज़माए जा।
    ~ Ehsaan Danish
  • न सोचा न समझा...

    न सोचा न समझा न सीखा न जाना;
    मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना;

    ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना;
    सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना;

    ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरें;
    ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना;

    गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिन;
    है दुशवार काँटों से दामन बचाना;

    करो लाख तुम मातम-ए-नौजवानी;
    प 'मीर' अब नहीं आयेगा वो ज़माना।
    ~ Mir Taqi Mir
  • तुम्हारे जैसे लोग जबसे...

    तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे;
    तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे;

    खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के;
    वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे;

    सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं;
    तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहे;

    उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली;
    हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे;

    बहुत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना;
    तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे;

    असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में;
    परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे।
    ~ Aitbar Sajid
  • आज भड़की रग-ए-वहशत...

    आज भड़की रग-ए-वहशत तेरे दीवानों की;
    क़िस्मतें जागने वाली हैं बयाबानों की;

    फिर घटाओं में है नक़्क़ारा-ए-वहशत की सदा;
    टोलियाँ बंध के चलीं दश्त को दीवानों की;

    आज क्या सूझ रही है तेरे दीवानों को;
    धज्जियाँ ढूँढते फिरते हैं गरेबानों की;

    रूह-ए-मजनूँ अभी बेताब है सहराओं में;
    ख़ाक बे-वजह नहीं उड़ती बयाबानों की;

    उस ने 'एहसान' कुछ इस नाज़ से मुड़ कर देखा;
    दिल में तस्वीर उतर आई परी-ख़ानों की।
    ~ Ehsaan Danish
  • इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए;
    उन की सहेलियों के भी आँचल भिगो गए;

    चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर;
    जो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गए;

    सब देख कर गुज़र गए एक पल में और हम;
    दीवार पर बने हुए मंज़र में खो गए;

    मुझ को भी जागने की अज़ीयत से दे नजात;
    ऐ रात अब तो घर के दर ओ बाम सो गए;

    किस किस से और जाने मोहब्बत जताते हम;
    अच्छा हुआ कि बाल ये चाँदी के हो गए;

    इतनी लहू-लुहान तो पहले फ़ज़ा न थी;
    शायद हमारी आँखों में अब ज़ख़्म हो गए;

    इख़्लास का मुज़ाहिरा करने जो आए थे;
    'अज़हर' तमाम ज़ेहन में काँटे चुभो गए।
    ~ Azhar Inayati
  • शायद अभी है राख में कोई...

    शायद अभी है राख में कोई शरार भी;
    क्यों इंतज़ार भी है इज़्तिरार भी;

    ध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद का;
    मिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भी;

    अब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तो;
    हद-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी;

    हर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वो;
    जो कल न कर सके थे तेरा इन्तज़ार भी;

    इक राह रुक गई तो ठिठक क्यों गई आद;
    आबाद बस्तियाँ हैं पहाड़ों के पार भी।
    ~ Ada Jafri
  • जागती रात अकेली...

    जागती रात अकेली-सी लगे;
    ज़िंदगी एक पहेली-सी लगे;

    रुप का रंग-महल, ये दुनिया;
    एक दिन सूनी हवेली-सी लगे;

    हम-कलामी तेरी ख़ुश आए उसे;
    शायरी तेरी सहेली-सी लगे;

    मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल;
    मुझ को हर रात नवेली-सी लगे;

    रातरानी सी वो महके ख़ामोशी;
    मुस्कुरादे तो चमेली-सी लगे;

    फ़न की महकी हुई मेंहदी से रची;
    ये बयाज़ उस की हथेली-सी लगे।
    ~ Abdul Ahad Saaz