ग़ज़ल Hindi Shayari

  • ख़ुद को औरों की तवज्जो का...

    ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो;
    आइना देख लो, अहबाब से पूछा न करो;

    वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम;
    सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो;

    जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को;
    पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो;

    आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में;
    राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो;

    चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को;
    तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो;

    शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो;
    दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो।
    ~ Abdul Ahad Saaz
  • आँखों में धूप दिल में हरारत...

    आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी;
    आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी;

    ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया;
    अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी;

    ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ;
    भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी;

    कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात;
    अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी;

    'ख़ालिद' हर एक ग़म में बराबर का शरीक था;
    सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी।
    ~ Khalid Mahmood
  • जो मेरा दोस्त भी है...

    जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है;
    वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है;

    मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ;
    मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है;

    सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी;
    हमारे सामने ख्वाबों का मसला भी है;

    जवाब दे ना सका, और बन गया दुश्मन;
    सवाल था, के तेरे घर में आईना भी है;

    ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन;
    ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है।
    ~ Rahat Indori
  • आए हैं मीर मुँह को बनाए...

    आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज;
    शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज;

    जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं;
    हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज;

    साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख;
    टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज;

    था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर';
    पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज।
    ~ Mir Taqi Mir
  • बुझी नज़र तो करिश्मे भी...

    बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गये;
    कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये;

    करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला;
    यही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गये;

    मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना;
    ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये;

    अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये;
    ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये;

    गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा;
    गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये;

    तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़';
    इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये।
    ~ Ahmad Faraz
  • बहुत तारीक सहरा हो गया...

    बहुत तारीक सहरा हो गया है;
    हवा का शोर गहरा हो गया है;

    किसी के लम्स का ये मोजज़ा है;
    बदन सारा सुनहरा हो गया है;

    ये दिल देखूँ कि जिस के चार जानिब;
    तेरी यादों का पहरा हो गया है;

    वही है ख़ाल-ओ-ख़द में रौशनी सी;
    पे तिल आँखों का गहरा हो गया है;

    कभी उस शख़्स को देखा है तुम ने;
    मोहब्बत से सुनहरा हो गया है।
    ~ Noshi Gilani
  • जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा...

    जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा;
    बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा;

    डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती;
    दिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठा;

    मरने वाले फ़ना भी पर्दा है;
    उठ सके गर तो ये हिजाब उठा;

    हम तो आँखों का नूर खो बैठे;
    उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा;

    आलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबा;
    इश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठा;

    होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान';
    ला उठा शीशा-ए-शराब उठा।
    ~ Ahsaan Danish
  • सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को...

    सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है;
    मैं चलता हूँ मुझे चेहरा तुम्हारा याद रहता है;

    तुम्हारा ज़र्फ़ है तुम को मोहब्बत भूल जाती है;
    हमें तो जिस ने हँस कर भी पुकारा याद रहता है;

    मोहब्बत में जो डूबा हो उसे साहिल से क्या लेना;
    किसे इस बहर में जा कर किनारा याद रहता है;

    बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने;
    यही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है;

    मैं किस तेज़ी से ज़िंदा हूँ मैं ये तो भूल जाता हूँ;
    नहीं आना है दुनिया में दोबारा याद रहता है।
    ~ Adeem Hashmi
  • गुलों के साथ अजल के...

    गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए;
    बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए;

    हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना;
    हज़ार बार किसी के पयाम भी आए;

    चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी;
    जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए;

    जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे;
    हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए;

    बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ';
    रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए।
    ~ Ghulam Rabbani Taban
  • दर्द से मेरा दामन...

    दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह;
    फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह;

    मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे;
    रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह;

    सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके;
    सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह;

    या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे;
    या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह।
    ~ Qateel Shifai