ख़ुद को औरों की तवज्जो का... ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करो; आइना देख लो, अहबाब से पूछा न करो; वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम; सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो; जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को; पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो; आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में; राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो; चारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को; तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो; शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो; दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो। |
आँखों में धूप दिल में हरारत... आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी; आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी; ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया; अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी; ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ; भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी; कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात; अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी; 'ख़ालिद' हर एक ग़म में बराबर का शरीक था; सारे जहाँ के बीच रफ़ाकत लहू की थी। |
जो मेरा दोस्त भी है... जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है; वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है; मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ; मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है; सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी; हमारे सामने ख्वाबों का मसला भी है; जवाब दे ना सका, और बन गया दुश्मन; सवाल था, के तेरे घर में आईना भी है; ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन; ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है। |
आए हैं मीर मुँह को बनाए... आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज; शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज; जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं; हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज; साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख; टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज; था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर'; पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज। |
बुझी नज़र तो करिश्मे भी... बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गये; कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये; करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला; यही है रस्म-ए-ज़माना तो हम भी अब के गये; मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना; ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये; अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये; ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये; गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा; गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये; तुम अपनी शम-ए-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'; इन आँधियों मे तो प्यार-ए-चिराग सब के गये। |
बहुत तारीक सहरा हो गया... बहुत तारीक सहरा हो गया है; हवा का शोर गहरा हो गया है; किसी के लम्स का ये मोजज़ा है; बदन सारा सुनहरा हो गया है; ये दिल देखूँ कि जिस के चार जानिब; तेरी यादों का पहरा हो गया है; वही है ख़ाल-ओ-ख़द में रौशनी सी; पे तिल आँखों का गहरा हो गया है; कभी उस शख़्स को देखा है तुम ने; मोहब्बत से सुनहरा हो गया है। |
जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा... जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा; बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा; डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती; दिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठा; मरने वाले फ़ना भी पर्दा है; उठ सके गर तो ये हिजाब उठा; हम तो आँखों का नूर खो बैठे; उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा; आलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबा; इश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठा; होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान'; ला उठा शीशा-ए-शराब उठा। |
सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को... सर-ए-सहरा मुसाफ़िर को सितारा याद रहता है; मैं चलता हूँ मुझे चेहरा तुम्हारा याद रहता है; तुम्हारा ज़र्फ़ है तुम को मोहब्बत भूल जाती है; हमें तो जिस ने हँस कर भी पुकारा याद रहता है; मोहब्बत में जो डूबा हो उसे साहिल से क्या लेना; किसे इस बहर में जा कर किनारा याद रहता है; बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने; यही बस एक दरिया का नज़ारा याद रहता है; मैं किस तेज़ी से ज़िंदा हूँ मैं ये तो भूल जाता हूँ; नहीं आना है दुनिया में दोबारा याद रहता है। |
गुलों के साथ अजल के... गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए; बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए; हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना; हज़ार बार किसी के पयाम भी आए; चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी; जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए; जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे; हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए; बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'; रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए। |
दर्द से मेरा दामन... दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह; फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह; मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे; रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह; सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके; सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह; या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे; या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह। |