फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम; जब धूप में साया कोई सिर पर न मिलेगा! |
पहाड़ काटने वाले ज़मीन से हार गए; इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या! |
मानी हैं मैंने सैकड़ों बातें तमाम उम्र; आज आप एक बात मेरी मान जाइए! |
सो देख कर तेरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया; कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी! |
बताऊँ किस हवाले से उन्हें बैराग का मतलब; जो तारे पूछते हैं रात को घर क्यों नहीं जाता! |
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो; जिस से बढ़े बेचैनी दिल की ऐसी तसल्ली रहने दो! |
वो चेहरा किताबी रहा सामने; बड़ी ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई! |
जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर; हर सुब्ह एक अज़ाब है अख़बार देखना! |
पहले इसमें एक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था; रूठना अब तो तेरी आदत में शामिल हो गया! |
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब; वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है! |