उलझा दिल-ए-सितम-ज़दा ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से आज; नाज़िल हुई बला मेरे सर पर कहाँ से आज; तड़पूँगा हिज्र-ए-यार में है रात चौधवीं; तन चाँदनी में होगा मुक़ाबिल कताँ से आज; दो-चार रश्क-ए-माह भी हम-राह चाहिएँ; वादा है चाँदनी में किसी मेहर-बाँ से आज; हंगाम-ए-वस्ल रद्द-ओ-बदल मुझ से है अबस; निकलेगा कुछ न काम नहीं और हाँ से आज; क़ार-ए-बदन में रूह पुकारी ये वक़्त-ए-नज़ा; मुद्दत के बाद उठते हैं हम इस मकाँ से आज; अँधेर था निगाह-ए-'अमानत' में शाम सहर; तुम चाँद की तरह निकल आए कहाँ से आज। |
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे; तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे; खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के; वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे; सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं; तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें; उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली; हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे; बोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना; तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे; असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में; परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे। |
जग में आकर इधर उधर देखा... जग में आकर इधर उधर देखा; तू ही आया नज़र जिधर देखा; जान से हो गए बदन ख़ाली; जिस तरफ़ तूने आँख भर देखा; नाला, फ़रियाद, आह और ज़ारी; आप से हो सका सो कर देखा; उन लबों ने की न मसीहाई; हम ने सौ-सौ तरह से मर देखा; ज़ोर आशिक़ मिज़ाज है कोई; 'दर्द' को क़िस्स:-ए- मुख्तसर देखा। |
गुल को महबूब में क़यास किया; फ़र्क़ निकला बहोत जो बास किया; दिल ने हम को मिसाल-ए-आईना; एक आलम से रू-शिनास किया; कुछ नहीं सूझता हमें उस बिन; शौक़ ने हम को बे-हवास किया; सुबह तक शमा सर को ढुँढती रही; क्या पतंगे ने इल्तेमास किया; ऐसे वहाशी कहाँ हैं अए ख़ुबाँ; 'मीर' को तुम ने अबस उदास किया। |
न जाओ हाल-ए-दिल-ए-ज़ार देखते जाओ; कि जी न चाहे तो नाचार देखते जाओ; बहार-ए-उमर् में बाग़-ए-जहाँ की सैर करो; खिला हुआ है ये गुलज़ार देखते जाओ; उठाओ आँख, न शरमाओ ,ये तो महिफ़ल है; ग़ज़ब से जानिब-ए-अग़यार देखते जाओ; हुआ है क्या अभी हंगामा अभी कुछ होगा; फ़ुगां में हश्र के आसार देखते जाओ; तुम्हारी आँख मेरे दिल से बेसबब-बेवजह; हुई है लड़ने को तय्यार देखते जाओ; न जाओ बंद किए आँख रहरवान-ए-अदम; इधर-उधर भी ख़बरदार देखते जाओ; कोई न कोई हर इक शेर में है बात ज़रूर; जनाबे-दाग़ के अशआर देखते जाओ। |
डरा के मौज-ओ-तलातुम से हमनशीनों को; यही तो हैं जो डुबोया किए सफ़ीनों को; शराब हो ही गई है बक़द्रे-पैमाना; ब-अ़ज़्मे-तर्क निचोड़ा जो आस्तीनों को; जमाले-सुबह दिया रू-ए-नौबहार दिया; मेरी निग़ाह भी देता ख़ुदा हसीनों को; हमारी राह में आए हज़ार मैख़ाने; भुला सके न मगर होश के क़रीनों को; कभी नज़र भी उठाई न सू-ए-बादा-ए-नाब; कभी चढ़ा गए पिघला के आबगीनों को; हुए है क़ाफ़िले जुल्मत की वादियों में रवाँ; चिराग़े राह किए ख़ूंचका जबीनों को; तुझे न माने कोई तुझको इससे क्या 'मजरूह'; चल अपनी राह, भटकने दे नुक़्ताचीनों को। |
मय रहे, मीना रहे... मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है, कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं, रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है, अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो, उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों, शीशे की परी हो,घर परीखाना रहे। |
ख़्वाब इस आँखों से अब कोई चुरा कर ले जाये; क़ब्र के सूखे हुए फूल उठा कर ले जाये; मुंतज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से; कोई झोंकें की तरह आये उड़ा कर ले जाये; ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी; जो हथेली पे रची मेहंदी उड़ा कर ले जाये; मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझ को; ज़िन्दगी अपनी किताबों में दबा कर ले जाये; ख़ाक इंसाफ़ है नाबीना बुतों के आगे; रात थाली में चिराग़ों को सजा कर ले जाये। |
दिल को क्या हो गया... दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने; क्यों है ऐसा उदास क्या जाने; कह दिया मैं ने हाल-ए-दिल अपना; इस को तुम जानो या ख़ुदा जाने; जानते जानते ही जानेगा; मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने; तुम न पाओगे सादा दिल मुझसा; जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने। |
क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते; कुछ करते हैं ऐसा ब-ख़ुदा कुछ नहीं करते; अपने मर्ज़-ए-ग़म का हकीम और कोई है; हम और तबीबों की दवा कुछ नहीं करते; मालूम नहीं हम से हिजाब उन को है कैसा; औरों से तो वो शर्म ओ हया कुछ नहीं करते; गो करते हैं ज़ाहिर को सफ़ा अहल-ए-कुदूरत; पर दिल को नहीं करते सफ़ा कुछ नहीं करते; वो दिल-बरी अब तक मेरी कुछ करते हैं लेकिन; तासीर तेरे नाले दिला कुछ नहीं करते; करते हैं वो इस तरह 'ज़फ़र' दिल पे जफ़ाएँ; ज़ाहिर में ये जानो के जफ़ा कुछ नहीं करते। |