मैं इस उम्मीद पे डूबा... मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा; अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा; ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा; ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा; मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा; कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा; कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए; जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा; मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे; सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा; हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम'; मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा। |
अगर यूँ ही ये दिल... अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा; तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगा; मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े; मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा; गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ; मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा; क़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरों; ख़बर कल की हमको सुनाता रहेगा; ख़फ़ा हो कि ऐ 'दर्द' मर तो चला तू; कहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा। |
सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा... सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता; सनम दिखलाएँगे राहे-ख़ुदा ऐसे नहीं होता; गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़तल में; मेरे क़ातिल हिसाबे-खूँबहा ऐसे नहीं होता; जहाने दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें; यहाँ पैमाने-तस्लीमो-रज़ा ऐसे नहीं होता; हर इक शब हर घड़ी गुजरे क़यामत, यूँ तो होता है; मगर हर सुबह हो रोजे़-जज़ा, ऐसे नहीं होता; रवाँ है नब्ज़े-दौराँ, गार्दिशों में आसमाँ सारे; जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका, ऐसे नहीं होता। |
साग़र से लब लगा के... साग़र से लब लगा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; सहन-ए-चमन में आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मन; तुम को क़रीब पाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर; बे-वजह मुस्कुरा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; साहिल पे भी तो इतनी शगुफ़ता रविश न थी; तूफ़ाँ के बीच आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; वीरान दिल है और 'अदम' ज़िन्दगी का रक़्स; जंगल में घर बनाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी। |
जो ख्याल थे, न कयास थे... जो ख्याल थे, न कयास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; जो मोहब्बतों की आस थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; जिन्हें मानता नहीं ये दिल, वो ही लोग मेरे हैं हमसफ़र; मुझे हर तरह से जो रास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; मुझे लम्हा भर की रफ़ाक़तों के सराब बहुत सतायेंगे; मेरी उम्र भर की प्यास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; ये जो जाल सारे है आरजी, ये गुलाब सारे है कागजी; गुल-ए-आरजू की जो बास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए; मेरी धडकनों के करीब थे, मेरी चाह थे, मेरा ख्वाब थे; वो जो रोज़-ओ-शब मेरे पास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए। |
उन्हें सवाल ही लगता है... उन्हें सवाल ही लगता है मेरा रोना भी; अजब सज़ा है जहाँ में ग़रीब होना भी; ये रात भी है ओढ़ना-बिछौना भी; इस एक रात में है जागना भी सोना भी; अजीब शहर है कि घर भी रास्तों की तरह; कैसा नसीब है रातों को छुप के रोना भी; खुले में सोएँगे मोतिया के फूलों से; सजा लो ज़ुल्फ़ बसा लो ज़रा बिछौना भी; 'अज़ीज़' कैसी यह सौदागरों की बस्ती है; गराँ है दिल से यहाँ काठ का खिलौना भी। |
खुली आँखों में सपना... खुली आँखों में सपना जागता है; वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है; तेरी चाहत के भीगे जंगलों में; मेरा तन मोर बन के नाचता है; मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे; वो मेरे सब हवाले जानता है; किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल; बहाने से मुझे भी टालता है; सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा; कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है। |
अगर तलाश करूँ... अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा; मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा; तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा; मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा; ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो; मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा; मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ; अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा; तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है; तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा। |
किस को क़ातिल मैं कहूँ... किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ; सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था; अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ; दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे; ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ; ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी; लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ। |
सारी बस्ती में ये जादू... सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको; जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको; सदियों का रस जगा मेरी रातों में आ गया; मैं एक हसीन शक्स की बातों में आ गया; जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए; देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए; गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर; उड़ जाए दुपट्टा तो खनक ओढ़ लिया कर; तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं; एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं; रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोखे खाए हैं; अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए हैं। |