ग़ज़ल Hindi Shayari

  • मैं इस उम्मीद पे डूबा...

    मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा;
    अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा;

    ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा;
    ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा;

    मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा;
    कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा;

    कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए;
    जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा;

    मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे;
    सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा;

    हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता 'वसीम';
    मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा।
    ~ Wasim Barelvi
  • अगर यूँ ही ये दिल...

    अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा;
    तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगा;

    मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े;
    मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा;

    गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ;
    मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा;

    क़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरों;
    ख़बर कल की हमको सुनाता रहेगा;

    ख़फ़ा हो कि ऐ 'दर्द' मर तो चला तू;
    कहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा।
    ~ Khwaja Mir Dard
  • सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा...

    सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होता;
    सनम दिखलाएँगे राहे-ख़ुदा ऐसे नहीं होता;

    गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़तल में;
    मेरे क़ातिल हिसाबे-खूँबहा ऐसे नहीं होता;

    जहाने दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें;
    यहाँ पैमाने-तस्लीमो-रज़ा ऐसे नहीं होता;

    हर इक शब हर घड़ी गुजरे क़यामत, यूँ तो होता है;
    मगर हर सुबह हो रोजे़-जज़ा, ऐसे नहीं होता;

    रवाँ है नब्ज़े-दौराँ, गार्दिशों में आसमाँ सारे;
    जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका, ऐसे नहीं होता।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • साग़र से लब लगा के...

    साग़र से लब लगा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी;
    सहन-ए-चमन में आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी;

    आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मन;
    तुम को क़रीब पाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी;

    होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर;
    बे-वजह मुस्कुरा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी;

    साहिल पे भी तो इतनी शगुफ़ता रविश न थी;
    तूफ़ाँ के बीच आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी;

    वीरान दिल है और 'अदम' ज़िन्दगी का रक़्स;
    जंगल में घर बनाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी।
    ~ Abdul Hameed Adam
  • जो ख्याल थे, न कयास थे...

    जो ख्याल थे, न कयास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए;
    जो मोहब्बतों की आस थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए;

    जिन्हें मानता नहीं ये दिल, वो ही लोग मेरे हैं हमसफ़र;
    मुझे हर तरह से जो रास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए;

    मुझे लम्हा भर की रफ़ाक़तों के सराब बहुत सतायेंगे;
    मेरी उम्र भर की प्यास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए;

    ये जो जाल सारे है आरजी, ये गुलाब सारे है कागजी;
    गुल-ए-आरजू की जो बास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए;

    मेरी धडकनों के करीब थे, मेरी चाह थे, मेरा ख्वाब थे;
    वो जो रोज़-ओ-शब मेरे पास थे, वो ही लोग मुझसे बिछड़ गए।
    ~ Aitbar Sajid
  • उन्हें सवाल ही लगता है...

    उन्हें सवाल ही लगता है मेरा रोना भी;
    अजब सज़ा है जहाँ में ग़रीब होना भी;

    ये रात भी है ओढ़ना-बिछौना भी;
    इस एक रात में है जागना भी सोना भी;

    अजीब शहर है कि घर भी रास्तों की तरह;
    कैसा नसीब है रातों को छुप के रोना भी;

    खुले में सोएँगे मोतिया के फूलों से;
    सजा लो ज़ुल्फ़ बसा लो ज़रा बिछौना भी;

    'अज़ीज़' कैसी यह सौदागरों की बस्ती है;
    गराँ है दिल से यहाँ काठ का खिलौना भी।
    ~ Aziz Qaizi
  • खुली आँखों में सपना...

    खुली आँखों में सपना जागता है;
    वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है;

    तेरी चाहत के भीगे जंगलों में;
    मेरा तन मोर बन के नाचता है;

    मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे;
    वो मेरे सब हवाले जानता है;

    किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल;
    बहाने से मुझे भी टालता है;

    सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा;
    कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है।
    ~ Parveen Shakir
  • अगर तलाश करूँ...

    अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा;
    मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा;

    तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा;
    मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा;

    ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो;
    मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा;

    मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ;
    अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा;

    तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है;
    तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा।
    ~ Bashir Badr
  • किस को क़ातिल मैं कहूँ...

    किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ;
    सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ

    वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था;
    अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ;

    दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे;
    ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ;

    ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी;
    लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • सारी बस्ती में ये जादू...

    सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको;
    जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको;

    सदियों का रस जगा मेरी रातों में आ गया;
    मैं एक हसीन शक्स की बातों में आ गया;

    जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए;
    देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए;

    गुस्ताख हवाओं की शिकायत न किया कर;
    उड़ जाए दुपट्टा तो खनक ओढ़ लिया कर;

    तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं;
    एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं;

    रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोखे खाए हैं;
    अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए हैं।
    ~ Qateel Shifai