ग़ज़ल Hindi Shayari

  • इतना तो ज़िंदगी में...

    इतना तो ज़िंदगी में किसी की ख़लल पड़े;
    हँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े;

    जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म;
    यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े;

    एक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है;
    एक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़े;

    मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह;
    जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े;

    साक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगर;
    मय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े।
    ~ Kaifi Azmi
  • दूर से आये थे...

    दूर से आये थे साक़ी सुनके मयख़ाने को हम;
    बस तरसते ही चले अफ़सोस पैमाने को हम;

    मय भी है, मीना भी है, साग़र भी है साक़ी नहीं;
    दिल में आता है लगा दें आग मयख़ाने को हम;

    हमको फँसना था क़फ़ज़ में, क्या गिला सय्याद का;
    बस तरसते ही रहे हैं, आब और दाने को हम;

    बाग में लगता नहीं सहरा में घबराता है दिल;
    अब कहाँ ले जा कर बिठाऐं ऐसे दीवाने को हम;

    ताक-ए-आबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई;
    अब तो पूजेंगे उसी क़ाफ़िर के बुतख़ाने को हम;

    क्या हुई तक़्सीर हम से, तू बता दे ए 'नज़ीर';
    ताकि शादी मर्ग समझें, ऐसे मर जाने को हम।
    ~ Nazeer Akbarabadi
  • राहत-ए-जाँ से तो ये दिल...

    राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का बवाल अच्छा है;
    उस ने पूछा तो है इतना तेरा हाल अच्छा है;

    माह अच्छा है बहुत ही न ये साल अच्छा है;
    फिर भी हर एक से कहता हूँ कि हाल अच्छा है;

    तेरे आने से कोई होश रहे या न रहे;
    अब तलक तो तेरे बीमार का हाल अच्छा है;

    ये भी मुमकिन है तेरी बात ही बन जाए कोई;
    उसे दे दे कोई अच्छी सी मिसाल अच्छा है;

    दाएँ रुख़्सार पे आतिश की चमक वजह-ए-जमाल;
    बाएँ रुख़्सार की आग़ोश में ख़ाल अच्छा है;

    क्यों परखते हो सवालों से जवाबों को 'अदीम';
    होंठ अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है।
    ~ Adeem Hashmi
  • कब वो ज़ाहिर होगा...

    कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे;
    जितनी भी मुश्किल में हूँ आसान कर देगा मुझे;

    रू-ब-रू कर के कभी अपने महकते सुर्ख होंठ;
    एक दो पल के लिए गुलदान कर देगा मुझे;

    रूह फूँकेगा मोहब्बत की मेरे पैकर में वो;
    फिर वो अपने सामने बे-जान कर देगा मुझे;

    ख़्वाहिशों का खून बहाएगा सर-ए-बाज़ार-ए-शौक़;
    और मुकम्मल बे-ए-सर-ओ-सामान कर देगा मुझे;

    एक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़;
    रफ़्ता रफ़्ता इस क़दर सुनसान कर देगा मुझे;

    या तो मुझ से वो छुड़ा देगा ग़ज़ल-गोई 'ज़फ़र';
    या किसी दिन साहब-ए-दीवान कर देगा मुझे।
    ~ Zafar Iqbal
  • घर का रास्ता भी मिला था शायद...

    घर का रास्ता भी मिला था शायद;
    राह में संग-ए-वफ़ा था शायद;

    इस क़दर तेज़ हवा के झोंके;
    शाख़ पर फूल खिला था शायद;

    जिस की बातों के फ़साने लिखे;
    उस ने तो कुछ न कहा था शायद;

    लोग बे-मेहर न होते होंगे;
    वहम सा दिल को हुआ था शायद;

    तुझ को भूले तो दुआ तक भूले;
    और वही वक़्त-ए-दुआ था शायद;

    ख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लम;
    और फिर कुछ न लिखा था शायद;

    दिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदा';
    पहले आँखों में रचा था शायद।
    ~ Ada Jafri
  • छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़...

    छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ;
    लोग ज़िंदा हैं अजब सूरत-ए-हालात के साथ;

    फ़ैसला ये तो बहर-हाल तुझे करना है;
    ज़ेहन के साथ सुलगना है कि जज़्बात के साथ;

    गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर;
    एक नई बात निकल आती है हर बात के साथ;

    अब कि ये सोच के तुम ज़ख़्म-ए-जुदाई देना;
    दिल भी बुझ जाएगा ढलती हुई इस रात के साथ;

    तुम वही हो कि जो पहले थे मेरी नज़रों में;
    क्या इज़ाफ़ा हुआ अतलस ओ बानात के साथ;

    भेजता रहता है गुम-नाम ख़तों में कुछ फूल;
    इस क़दर किस को मोहब्बत है मेरी ज़ात के साथ।
    ~ Aitbar Sajid
  • आफत की शोख़ियां हैं...

    आफत की शोख़ियां हैं तुम्हारी निगाह में;
    मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-ए-गाह में;

    वो दुश्मनी से देखते हैं देखते तो हैं;
    मैं शाद हूँ कि हूँ तो किसी की निगाह में;

    आती है बात बात मुझे याद बार बार;
    कहता हूँ दौड़ दौड़ के कासिद से राह में;

    इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस कदर;
    जो टूट कर शरीक हूँ हाल-ए-तबाह में;

    मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे;
    ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में।
    ~ Daagh Dehlvi
  • निगाहों का मर्कज़...

    निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँ;
    मोहब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँ;

    मैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरिया;
    अज़ल से अबद तक बहा जा रहा हूँ;

    वही हुस्न जिसके हैं ये सब मज़ाहिर;
    उसी हुस्न से हल हुआ जा रहा हूँ;

    न जाने कहाँ से न जाने किधर को;
    बस इक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूँ;

    न सूरत न मआनी न पैदा, न पिन्हाँ
    ये किस हुस्न में गुम हुआ जा रहा हूँ।
    ~ Jigar Moradabadi
  • भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार...

    भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें;
    आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें;

    कोई खिड़की नहीं खुलती किसी बाग़ीचे में;
    साँस लेना भी है दुश्वार कहीं और चलें;

    तू भी मग़मूम है मैं भी हूँ बहुत अफ़्सुर्दा;
    दोनों इस दुख से हैं दो-चार कहीं और चलें;

    ढूँढते हैं कोई सर-सब्ज़ कुशादा सी फ़ज़ा;
    वक़्त की धुंध के उस पार कहीं और चलें;

    ये जो फूलों से भरा शहर हुआ करता था;
    उस के मंज़र हैं दिल-आज़ार कहीं और चलें;

    ऐसे हँगामा-ए-महशर में तो दम घुटता है;
    बातें कुछ करनी हैं इस बार कहीं और चलें।
    ~ Aitbar Sajid
  • कोई हँस रहा है...

    कोई हँस रहा है कोई रो रहा है;
    कोई पा रहा है कोई खो रहा है;

    कोई ताक में है किसी को है गफ़लत;
    कोई जागता है कोई सो रहा है;

    कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई;
    कोई बीज उम्मीद के बो रहा है;

    इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर';
    यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
    ~ Akbar Allahabadi