यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ; मैं तेरे शहर में मेहमान कुछ दिनों का हूँ! *इम्कान: Possibility, Contingent, Existence |
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी; लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे! |
हसीन तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा; जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे! |
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद; अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता! |
एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है; सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है! |
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से; तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से! |
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा; लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं! |
तू सामने है तो फिर क्यों यक़ीं नहीं आता; ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं! |
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है; तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या! |
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है; मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है! |