की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं; होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं। |
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी; तिरा रिन्द गिरते गिरते कहीं फिर संभल न जाए। |
समझ में साफ़ आ जाए फ़साहत इस को कहते हैं; असर हो सुनने वाले पर बलाग़त इस को कहते हैं। Meaning: फ़साहत = शुद्ध या अच्छी भाषा बलाग़त = भाषण |
सख्तियां करता हूं दिल पर गैर से गाफिल हूं मैं; हाय क्या अच्छी कही जालिम हूं, जाहिल हूं मैं। Meaning: गाफिल - अनजान |
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो। |
उम्मीदों का फटा पैरहन; रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है; तुम से मिलने की कोशिश में; किस-किस से मिलना पड़ता है! |
आज जिस्म में जान है तो देखते नही हैं लोग; जब रूह निकल जाएगी तो कफन हटा हटा कर देखेंगे लोग! |
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम; वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता। |
मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए; कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है| Meaning: मर्तबा - इज्जत, पद |
लेके तन के नाप को, घूमे बस्ती गाँव; हर चादर के घेर से, बाहर निकले पाँव। |