जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइज़; मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है! |
भोली बातों पे तेरी दिल को यकीन; पहले आता था अब नहीं आता! |
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत; हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है! |
दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका; कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ! |
मेरी ज़ुबान के मौसम बदलते रहते हैं; मैं आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना! |
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा; कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा! |
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है; जो किसी और का होने दे न अपना रखे! *वाबस्ता: संबंधित, जुड़ा हुआ |
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है; दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है! * हया: शर्म * क़ज़ा: मृत्यु |
और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी; हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं! |
दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते; अब कोई शिकवा हम नहीं करते! |