दिल में एक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए; बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया! |
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से; इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से! |
मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो; कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं! |
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे; मैंने जब की आह उस ने वाह की! |
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना; दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है! |
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें; क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता! |
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा; जा चुकी है बहार चुप हो जा! |
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ; अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया! |
एक ऐसा भी वक़्त होता है; मुस्कुराहट भी आह होती है! |
बताऊँ किस हवाले से उन्हें बैराग का मतलब; जो तारे पूछते हैं रात को घर क्यों नहीं जाता! |