मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का इल्म नहीं; जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं! * ख़िज़ाँ: पतझड़ |
यूँ ही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना; तेरी याद तो बन गई एक बहाना! |
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में; जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में! * मयस्सर: Available |
इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई; हम न सोए रात थक कर सो गई! |
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा; आदमी काम का नहीं होता! |
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है; कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं! |
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं; जान बहुत शर्मिंदा हैं! |
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे; कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए! |
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की; आज पहली बार उस से मैंने बेवफ़ाई की! |
मेरी क़िस्मत में ग़म अगर इतना था; दिल भी या-रब कई दिए होते! |