कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी; कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए! |
उफ्फ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन; देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं! * शफ़्फ़ाफ़: निर्मल |
मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर; वो जो दीवानगी की थी है अभी! |
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में; आईने आँखों के धुँधले हो गए! |
मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा; सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए! |
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा; आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी! *आह-ओ-ज़ारी: विलाप/शोक |
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी; तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करें हम! |
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें; बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें! |
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे; हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे! |
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त; दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से! |