आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं; नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है! |
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी; जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी! |
वो नहीं मेरा मगर उस से मोहब्बत है तो है; ये अगर रस्मों रिवाजों से बग़ावत है तो है! |
ऐसा न हो गुनाह की दलदल में जा फँसूँ; ऐ मेरी आरज़ू मुझे ले चल सँभाल के! |
ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर; कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से! |
ख़्वाब में या ख़याल में मुझे मिल; तू कभी ख़द्द-ओ-ख़ाल में मुझे मिल! |
सोचता हूँ मैं कि कुछ इस तरह रोना चाहिए; अपने अश्कों से तेरा दामन भिगोना चाहिए! |
हुए ज़लील तो इज़्ज़त की जुस्तुजू क्या है; किया जो इश्क़ तो फिर पास-ए-आबरू क्या है! |
आज तक बहका नहीं बाहर से दीवाना तेरा; हौंसले मेरी निगाहों के हैं पैमाना तेरा! |
सिले हों लब ज़बानें बंद तो बातें नहीं होतीं; मुख़ालिफ़ रास्ते हों तो मुलाक़ातें नहीं होतीं! |