Hindi Shayari

  • पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं;<br/>
मुझ को लगता है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं!Upload to Facebook
    पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं;
    मुझ को लगता है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं!
    ~ Osama Khalid
  • मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है;<br/>
पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले!Upload to Facebook
    मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है;
    पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले!
    ~ Parveen Sajal
  • फिर से तेरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए;<br/>
लो फिर विसाल-ए-यार के लम्हे जवाँ हुए!<br/><br/>
*नुक़ूश: रेखाएँ<br/>
*अयाँ: स्पष्ट, प्रत्यक्षUpload to Facebook
    फिर से तेरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए;
    लो फिर विसाल-ए-यार के लम्हे जवाँ हुए!

    *नुक़ूश: रेखाएँ
    *अयाँ: स्पष्ट, प्रत्यक्ष
    ~ Qamar Naqvi
  • एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है;<br/>
इस समुंदर में कोई और समुंदर गुम है!Upload to Facebook
    एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है;
    इस समुंदर में कोई और समुंदर गुम है!
    ~ Rafi Raza
  • बिना देखे तुझे अपना बना कर देख लेता हूँ;<br/>
मैं तेरे आस्ताँ पर सर झुका कर देख लेता हूँ!Upload to Facebook
    बिना देखे तुझे अपना बना कर देख लेता हूँ;
    मैं तेरे आस्ताँ पर सर झुका कर देख लेता हूँ!
    ~ Hafeez Shahid
  • किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं;<br/>
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं!Upload to Facebook
    किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं;
    तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं!
    ~ Iftikhar Mughal
  • किसी की जब से जफ़ाओं का सिलसिला न रहा;<br/>
दिल-ए-हज़ीं में मोहब्बत का हौसला न रहा!Upload to Facebook
    किसी की जब से जफ़ाओं का सिलसिला न रहा;
    दिल-ए-हज़ीं में मोहब्बत का हौसला न रहा!
    ~ Kaleem Sahasrami
  • अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा;<br/>
सब ग़ैर हैं कोई भी हमारा नहीं रहा!Upload to Facebook
    अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा;
    सब ग़ैर हैं कोई भी हमारा नहीं रहा!
    ~ Ghazal Ansari
  • लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए;<br/>
कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए!Upload to Facebook
    लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए;
    कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए!
    ~ Faiz Ul Hasan Khayal
  • तपती ज़मीं पे पाँव न धर अब भी लौट जा;<br/>
क्यों हो रहा है ख़ाक-ब-सर अब भी लौट जा!Upload to Facebook
    तपती ज़मीं पे पाँव न धर अब भी लौट जा;
    क्यों हो रहा है ख़ाक-ब-सर अब भी लौट जा!
    ~ Ejaz Rahi