पाँव का ध्यान तो है राह का डर कोई नहीं; मुझ को लगता है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र कोई नहीं! |
मुस्कुराने की सज़ा कितनी कड़ी होती है; पूछ आओ ये किसी खिलती कली से पहले! |
फिर से तेरे नुक़ूश नज़र पे अयाँ हुए; लो फिर विसाल-ए-यार के लम्हे जवाँ हुए! *नुक़ूश: रेखाएँ *अयाँ: स्पष्ट, प्रत्यक्ष |
एक मज्ज़ूब उदासी मेरे अंदर गुम है; इस समुंदर में कोई और समुंदर गुम है! |
बिना देखे तुझे अपना बना कर देख लेता हूँ; मैं तेरे आस्ताँ पर सर झुका कर देख लेता हूँ! |
किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं; तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं! |
किसी की जब से जफ़ाओं का सिलसिला न रहा; दिल-ए-हज़ीं में मोहब्बत का हौसला न रहा! |
अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा; सब ग़ैर हैं कोई भी हमारा नहीं रहा! |
लोग कहते हैं कि क़ातिल को मसीहा कहिए; कैसे मुमकिन है अंधेरों को उजाला कहिए! |
तपती ज़मीं पे पाँव न धर अब भी लौट जा; क्यों हो रहा है ख़ाक-ब-सर अब भी लौट जा! |