जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं; क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं! |
दिल पे जज़्बों का राज है साहब; इश्क़ अपना मिज़ाज है साहब! |
तमाम वक़्त तुम्हीं से कलाम करते हैं; शब-ए-फ़िराक़ का यूँ एहतिमाम करते हैं! *कलाम- बात, बातें |
रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया; आँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया! * तीरगी- अँधेरा |
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए; इस के बा'द आए जो अज़ाब आए! *अब्र- मेघ, बादल |
अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है; मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है! *हिज्र- जुदाई |
ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम; मेरे क़ातिल की ये निशानी है! |
तन्हाई की आग़ोश में था सुबह से पहले; मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुबह से पहले! |
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से; तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से! |
कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए; तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए! |