Hindi Shayari

  • जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं;<br/>
क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं!Upload to Facebook
    जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं;
    क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं!
    ~ Kailash Mahir
  • दिल पे जज़्बों का राज है साहब;<br/>
इश्क़ अपना मिज़ाज है साहब!Upload to Facebook
    दिल पे जज़्बों का राज है साहब;
    इश्क़ अपना मिज़ाज है साहब!
    ~ Lubna Safdar
  • तमाम वक़्त तुम्हीं से कलाम करते हैं;<br/>
शब-ए-फ़िराक़ का यूँ एहतिमाम करते हैं!<br/><br/>
*कलाम- बात, बातेंUpload to Facebook
    तमाम वक़्त तुम्हीं से कलाम करते हैं;
    शब-ए-फ़िराक़ का यूँ एहतिमाम करते हैं!

    *कलाम- बात, बातें
    ~ Daud Ghazi
  • रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया;<br/>
आँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया!
* तीरगी- अँधेराUpload to Facebook
    रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया;
    आँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया! * तीरगी- अँधेरा
    ~ Ejaz Asif
  • आए कुछ अब्र कुछ शराब आए;<br/>
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए!<br/><br/>
*अब्र- मेघ, बादलUpload to Facebook
    आए कुछ अब्र कुछ शराब आए;
    इस के बा'द आए जो अज़ाब आए!

    *अब्र- मेघ, बादल
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है; <br/>
मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है!<br/>
*हिज्र- जुदाई<br/><br/>Upload to Facebook
    अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है;
    मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है!
    *हिज्र- जुदाई

    ~ Chitra Bhardwaj Suman
  • ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम;<br/>
मेरे क़ातिल की ये निशानी है!Upload to Facebook
    ना मेरी ज़ख़्म पर रखो मरहम;
    मेरे क़ातिल की ये निशानी है!
    ~ Goya Faqir Mohammad
  • तन्हाई की आग़ोश में था सुबह से पहले;<br/>
मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुबह से पहले!Upload to Facebook
    तन्हाई की आग़ोश में था सुबह से पहले;
    मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुबह से पहले!
    ~ Aamir Souqi
  • लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;<br/>
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!Upload to Facebook
    लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से;
    तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से!
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए;<br/>
तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए!Upload to Facebook
    कभी दुआ तो कभी बद-दुआ से लड़ते हुए;
    तमाम उम्र गुज़ारी हवा से लड़ते हुए!
    ~ Zafar Moradabadi