क्यों चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो; तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो! |
आँखें खुलीं तो जाग उठीं हसरतें तमाम; उस को भी खो दिया जिसे पाया था ख़्वाब में! |
खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही; जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है! |
वस्ल में रंग उड़ गया मेरा; क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा! *वस्ल: मिलन |
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं; जान बहुत शर्मिंदा हैं! |
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की; आज पहली बार उस से मैंने बेवफ़ाई की! |
आज एक और बरस बीत गया उस के बग़ैर; जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे! |
उस ने मंज़िल पे ला के छोड़ दिया; उम्र भर जिस का रास्ता देखा! |
घूम रहा हूँ तेरे ख़्यालों में; तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है! |
मैं हूँ दिल है तन्हाई है; तुम भी होते अच्छा होता! |