ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत...

    तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से अगर नफ़रत है;
    तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता;

    बे-नियाज़ी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ;
    तूने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता;

    तेरे बस में थी अगर मशाल-ए-जज़्बात की लौ;
    तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का होता;

    यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें;
    अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता;

    यूं ही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी;
    दम-ए-रुख्सत में अगर याद न आया होता।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • तुम्हारी राह में...

    तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते;
    इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते;

    मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है;
    ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते;

    जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का;
    उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते;

    ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना;
    बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते;

    बिसात-ए-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता;
    यह और बात कि बचने के घर नहीं आते;

    'वसीम' जहन बनाते हैं तो वही अख़बार;
    जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते।
    ~ Wasim Barelvi
  • बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है;
    जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है;

    कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया;
    हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है;

    तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने;
    मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है;

    कुछ और भी साँसें लेने पर मजबूर-सा मैं हो जाता हूँ;
    जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की ख़ुश्बू आती है;

    डरता हूँ कहीं इस आलम में जीने से न मुनकिर हो जाऊँ;
    अहबाब की बातों से मुझको एहसान की ख़ुश्बू आती है।
    ~ Qateel Shifai
  • झूठा निकला...

    झूठा निकला क़रार तेरा;
    अब किसको है ऐतबार तेरा;

    दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं;
    देखा बस हम ने प्यार तेरा;

    दम नाक में आ रहा था अपने;
    था रात ये इंतज़ार तेरा;

    कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे;
    मेरा क्या, इख्तियार तेरा;

    लिपटूँ हूँ गले से आप अपने;
    समझूँ कि है किनार तेरा;

    'इंशा' से मत रूठ, खफा हो;
    है बंदा जानिसार तेरा।
    ~ Insha Allah Khan Insha
  • इश्क़ को तक़लीद से...

    इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर;
    दिल से गिरया आँख से फ़रियाद कर;

    बाज़ आ ऐ बंदा-ए-हुस्न मिज़ाज़;
    यूँ न अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर;

    ऐ ख़यालों के मकीं नज़रों से दूर;
    मेरी वीराँ ख़ल्वतें आबाद कर;

    हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख;
    अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर;

    इशरत-ए-दुनिया है इक ख़्वाब-ए-बहार;
    काबा-ए-दिल दर्द से आबाद कर;

    अब कहाँ 'एहसान' दुनिया में वफ़ा;
    तौबा कर नादाँ ख़ुदा को याद कर।
    ~ Ehsaan Danish
  • ख़ून बर कर मुनासिब...

    ख़ून बर कर मुनासिब नहीं दिल बहे;
    दिल नहीं मानता कौन दिल से कहे;

    तेरी दुनिया में आए बहुत दिन रहे;
    सुख ये पाया कि हम ने बहुत दुख सहे;

    बुलबुलें गुल के आँसू नहीं चाटतीं;
    उन को अपनी ही मरग़ूब हैं चहचहे;

    आलम-ए-नज़ा में सुन रहा हूँ में क्या;
    ये अज़ीज़ों की चीख़ें हैं कया क़हक़हे;

    इस नए हुस्न की भी अदाओं पे हम;
    मर मिटेंगे ब-शर्ते-के ज़िंदा रहे;

    तुम 'हफ़ीज' अब घिसटने की मंज़िल में हो;
    दौर-ए-अय्याम पहिया है ग़म हैं रहे।
    ~ Hafeez Jalandhari
  • दिल को क्या हो गया...

    दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने;
    क्यों है ऐसा उदास क्या जाने;

    कह दिया मैंने हाल-ए-दिल अपना;
    इस को तुम जानो या ख़ुदा जाने;

    जानते जानते ही जानेगा;
    मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने;

    तुम न पाओगे सादा दिल मुझसा;
    जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने।
    ~ Daagh Dehlvi
  • कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर...

    कहीं से कोई हर्फ़-ए-मोतबर शायद न आए;
    मुसाफ़िर लौट कर अब अपने घर शायद न आए;

    क़फ़स में आब-ओ-दाने की फ़रावानी बहुत है;
    असीरों को ख़याल-ए-बाल-ओ-पर शायद न आए;

    किसे मालूम अहल-ए-हिज्र पर ऐसे भी दिन आएँ;
    क़यामत सर से गुज़रे और ख़बर शायद न आए;

    जहाँ रातों को पड़े रहते हैं आँखें मूँद कर लोग;
    वहाँ महताब में चेहरा नज़र शायद न आए;

    कभी ऐसा भी दिन निकले के जब सूरज के हम-राह;
    कोई साहिब-नज़र आए मगर शायद न आए;

    सभी को सहल-अंगारी हुनर लगने लगी है;
    सरों पर अब ग़ुबार-ए-रह-गुज़र शायद न आए।
    ~ Iftikhar Arif
  • क्या बताऊं कैसा खुद को...

    क्या बताऊं कैसा खुद को दर-ब-दर मैंने किया;
    उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया;

    तू तो नफरत भी न कर पायेगा इस शिद्दत के साथ;
    जिस बला का प्यार तुझसे बेखबर मैंने किया;

    कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म;
    ज़िंदगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया;

    शोहरतों कि नज्र कर दी शेर की मासूमियत;
    उस दिये की रौशनी को दर-ब-दर मैंने किया;

    चाँद जज्बाती से रिश्ते को बचाने को 'वसीम';
    कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया।
    ~ Wasim Barelvi
  • तेरे दर से उठकर...

    तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं;
    चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं;

    अगर तू ख़फा हो तो परवाह नहीं;
    तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं;

    तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे;
    कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं;

    सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर;
    जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं।
    ~ Khumar Barabankvi