ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तू इस क़दर मुझे...

    तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है;
    तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है;

    जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार;
    वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है;

    हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा;
    ना कोई गैर, ना कोई रक़ीब लगता है;

    ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहते ये खुलूस;
    कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है;

    उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा;
    मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है;

    ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो;
    बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है।
    ~ Jaan Nisar Akhtar
  • अज़ाब ये भी किसी...

    अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया;
    कि एक उम्र चले और घर नहीं आया;

    इस एक ख़्वाब की हसरत में जल बुझीं आँखें;
    वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया;

    करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला;
    सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया;

    दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते;
    ये चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया;

    अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़;
    बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया;

    हरीम-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी से निस्बतें भी रहीं;
    मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया।
    ~ Iftikhar Arif
  • ख़ातिर से तेरी याद को...

    ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते;
    सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते;

    आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते;
    अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते;

    किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल;
    तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते;

    परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले;
    क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते;

    हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना;
    दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते;

    दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त;
    हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।
    ~ Akbar Allahabadi
  • हमारा दिल सवेरे का...

    हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए;
    चिरागों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए;

    मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ;
    कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए;

    अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर;
    मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए;

    समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको;
    हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए;

    मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा;
    परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए;

    उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;
    न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए।
    ~ Bashir Badr
  • दिल गया...

    दिल गया रौनक-ए-हयात गई;
    ग़म गया सारी कायनात गई;

    दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र;
    लब तक आई न थी कि बात गई;

    उनके बहलाए भी न बहला दिल;
    गएगां सइये-इल्तफ़ात गई;

    हाय सरशरायां जवानी की;
    आँख झपकी ही थी के रात गई;

    नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हमसे;
    ग़ालिबन दूर तक ये बात गई;

    क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात 'जिगर';
    मौत आई अगर हयात गई।
    ~ Jigar Moradabadi
  • दुनिया के ज़ोर...

    दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये;
    दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये;

    गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी;
    सबको भरी बहार के दिन याद आ गये;

    ये क्या कि उनके होते हुए भी कभी-कभी;
    फ़िरदौस-ए-इंत्ज़ार के दिन याद आ गये;

    वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे;
    शक और ऐतबार के दिन याद आ गये;

    नादा थे जब्त-ए-गम का बहुत हज़रत-ए-'खुमार';
    रो-रो जिए थे जब वो याद आ गये।
    ~ Khumar Barabankvi
  • ऐ सबा, लौट के...

    ऐ सबा, लौट के किस शहर से तू आती है;
    तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है;

    खून कहाँ बहता है इंसान का पानी की तरह;
    जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है;

    धज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी;
    यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है;

    अपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें;
    मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है।
    ~ Kaifi Azmi
  • इश्क़ करो तो ये भी सोचो...

    इश्क़ करो तो ये भी सोचो अर्ज़-ए-सवाल से पहले;
    हिज्र की पूरी रात आती है सुब्ह-ए-विसाल से पहले;

    दिल का क्या है दिल ने कितने मंज़र देखे लेकिन;
    आँखें पागल हो जाती है एक ख़याल से पहले;

    किस ने रेत उड़ाई शब में आँखें खोल के रखी;
    कोई मिसाल तो होना उस की मिसाल से पहले;

    कार-ए-मोहब्बत एक सफ़र है इस में आ जाता है;
    एक ज़वाल-आसार सा रस्ता बाब-ए-कमाल से पहले;

    इश्क़ में रेशम जैसे वादों और ख़्वाबों का रस्ता;
    जितना मुमकिन हो तय कर लें गर्द-ए-मलाल से पहले।
    ~ Noshi Gilani
  • बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ;
    हर एक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओ;

    हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है;
    हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ;

    मेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है;
    मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ;

    तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को;
    तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ;

    अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिल;
    दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ;

    हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है;
    तेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ।
    ~ Adeem Hashmi
  • जब रूख़-ए-हुस्न से...

    जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा;
    बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा;

    डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती;
    दिल में तूफ़ान-ए-इजि़तराब उठा;

    मरने वाले फ़ना भी पर्दा है;
    उठ सके गर तो ये हिजाब उठा;

    शाहिद-ए-मय की ख़ल्वतों में पहुँच;
    पर्दा-ए-नशा-ए-शराब उठा;

    हम तो आँखों का नूर खो बैठे;
    उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा;

    होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान';
    ला उठा शीशा-ए-शराब उठा।
    ~ Ehsaan Danish