ग़ज़ल Hindi Shayari

  • ख़ून से जब जला दिया...

    ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ;
    फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ;

    महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई;
    फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ;

    मुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है;
    मेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ;

    दर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रही;
    वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ;

    सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई;
    और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ।
    ~ Pirzada Qasim
  • मेरा जी है जब तक...

    मेरा जी है जब तक तेरी जुस्तजू है;
    ज़बाँ जब तलक है यही गुफ़्तगू है;

    ख़ुदा जाने क्या होगा अंजाम इसका;
    मै बेसब्र इतना हूँ वो तुन्द ख़ू है;

    तमन्ना है तेरी अगर है तमन्ना;
    तेरी आरज़ू है अगर आरज़ू है;

    किया सैर सब हमने गुलज़ार-ए-दुनिया;
    गुल-ए-दोस्ती में अजब रंग-ओ-बू है;

    ग़नीमत है ये दीद वा दीद-ए-याराँ;
    जहाँ मूँद गयी आँख, मैं है न तू है;

    नज़र मेरे दिल की पड़ी 'दर्द' किस पर;
    जिधर देखता हूँ वही रू-ब-रू है।
    ~ Khwaja Mir Dard
  • तेरे लिए चलते थे...

    तेरे लिए चलते थे हम तेरे लिए ठहर गए;
    तू ने कहा तो जी उठे तू ने कहा तो मर गए;

    वक़्त ही जुदाई का इतना तवील हो गया;
    दिल में तेरे विसाल के जितने थे ज़ख़्म भर गए;

    होता रहा मुक़ाबला पानी का और प्यास का;
    सहरा उमड़ उमड़ पड़े दरिया बिफर बिफर गए;

    वो भी ग़ुबार-ए-ख़्वाब था हम ग़ुबार-ए-ख़्वाब थे;
    वो भी कहीं बिखर गया हम भी कहीं बिखर गए;

    आज भी इंतज़ार का वक़्त हुनूत हो गया;
    ऐसा लगा के हश्र तक सारे ही पल ठहर गए;

    इतने क़रीब हो गए अपने रक़ीब हो गए;
    वो भी 'अदीम' डर गया हम भी 'अदीम' डर गए।
    ~ Adeem Hashmi
  • कोई कैसा हम सफर है...

    कोई कैसा हम सफर है, ये अभी से मत बताओ;
    अभी क्या पता किसी का, कि चली नहीं है नाव;

    ये ज़रूरी तो नहीं है, कि सदा रहे मरासिम;
    ये सफर की दोस्ती है, इसे रोग मत बनाओ;

    मेरे चारागर बहुत हैं, ये खलिश मगर है दिल में;
    कोई ऐसा हो कि, जिस को हों अज़ीज़ मेरे घाव;

    तुम्हें आईना गिरी में है, बहुत कमाल हासिल;
    मेरा दिल है किरच किरच, इसे जोड़ के दिखाओ;

    मुझे क्या पड़ी है 'साजिद', के पराई आग मांगू;
    मैं ग़ज़ल का आदमी हूँ, मेरे अपने हैं अलाव।
    ~ Aitbar Sajid
  • आता है याद मुझको...

    आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना;
    वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना;

    आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की;
    अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना;

    लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम;
    शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना;

    वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत;
    आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना।
    ~ Allama Iqbal
  • घर का रस्ता...

    घर का रस्ता भी मिला था शायद;
    राह में संग-ए-वफ़ा था शायद;

    इस क़दर तेज़ हवा के झोंके;
    शाख़ पर फूल खिला था शायद;

    जिस की बातों के फ़साने लिखे;
    उस ने तो कुछ न कहा था शायद;

    लोग बे-मेहर न होते होंगे;
    वहम सा दिल को हुआ था शायद;

    तुझ को भूले तो दुआ तक भूले;
    और वही वक़्त-ए-दुआ था शायद;

    ख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लम;
    और फिर कुछ न लिखा था शायद;

    दिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदा'
    पहले आँखों में रचा था शायद।
    ~ Ada Jafri
  • बड़ा वीरान मौसम है...

    बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ;
    हर एक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओ;

    हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है;
    हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ;

    मेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है;
    मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ;

    तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को;
    तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ;

    अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिल;
    दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ;

    हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है;
    तेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ।
    ~ Adeem Hashmi
  • वो कभी मिल जाएँ तो...

    वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए;
    रात दिन सूरत को देखा कीजिए;

    चाँदनी रातों में एक एक फूल को;
    बे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिए;

    जो तमन्ना बर न आए उम्र भर;
    उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए;

    इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर;
    चाँदनी रातों में रोया कीजिए;

    हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे;
    क्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए;

    कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर;
    इस तरह हम को न रुसवा कीजिए।
    ~ Akhtar Sheerani
  • मुझ पे तूफ़ाँ...

    मुझ पे तूफ़ाँ उठाये लोगों ने;
    मुफ़्त बैठे बिठाये लोगों ने;

    कर दिए अपने आने-जाने के;
    तज़किरे जाये-जाये लोगों ने;

    वस्ल की बात कब बन आयी थी;
    दिल से दफ़्तर बनाये लोगों ने;

    बात अपनी वहाँ न जमने दी;
    अपने नक़्शे जमाये लोगों ने;

    सुनके उड़ती-सी अपनी चाहत की;
    दोनों के होश उड़ाये लोगों ने;

    क्या तमाशा है जो न देखे थे;
    वो तमाशे दिखाये लोगों ने;

    कर दिया 'मोमिन' उस सनम को ख़फ़ा;
    क्या किया हाये- हाये लोगों ने।
    ~ Hakim Momin Khan Momin
  • दिल गया रौनक-ए-हयात

    दिल गया रौनक-ए-हयात गई;
    ग़म गया सारी कायनात गई;

    दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र;
    लब तक आई न थी कि बात गई;

    उनके बहलाए भी न बहला दिल;
    गएगां सइये-इल्तफ़ात गई;

    मर्गे आशिक़ तो कुछ नहीं लेकिन;
    इक मसीहा-नफ़स की बात गई;

    हाय सरशरायां जवानी की;
    आँख झपकी ही थी के रात गई;

    नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हमसे;
    ग़ालिबन दूर तक ये बात गई;

    क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात 'जिगर';
    मौत आई अगर हयात गई।
    ~ Jigar Moradabadi