ग़ज़ल Hindi Shayari

  • अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले,
    दश्त पड़ता है मियां इश्क़ में घर से पहले;

    चल दिये उठके सू-ए-शहर-ए-वफ़ा कू-ए-हबीब,
    पूछ लेना था किसी ख़ाक बसर से पहले;

    इश्क़ पहले भी किया हिज्र का ग़म भी देखा,
    इतने तड़पे हैं न घबराये न तरसे पहले;

    जी बहलता ही नहीं अब कोई सअत कोई पल,
    रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले;

    हम किसी दर पे न ठिठके न कहीं दस्तक दी,
    सैकड़ों दर थे मेरी जां तेरे दर से पहले;

    चाँद से आँख मिली जी का उजाला जागा,
    हमको सौ बार हुई सुबह सहर से पहल।
    ~ Ibn-e-Insha
  • मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा;
    अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा;

    ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा;
    ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा;

    मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा;
    कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा;

    कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए;
    जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा;

    मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे;
    सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा;

    हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम;
    मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा।
    ~ Wasim Barelvi
  • तेरे दर से उठकर...

    तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं;
    चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं;

    अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं;
    तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं;

    तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे;
    कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं;

    सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर;
    जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं।
    ~ Khumar Barabankvi
  • पहले तो अपने दिल की...

    पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये;
    फिर जो निगाह-ए-यार कहे मान जाइये;

    पहले मिज़ाज-ए-राहगुज़र जान जाइये;
    फिर गर्द-ए-राह जो भी कहे मान जाइये;

    कुछ कह रही है आपके सीने की धड़कने;
    मेरी सुनें तो दिल का कहा मान जाइये;

    इक धूप सी जमी है निगाहों के आस पास;
    ये आप हैं तो आप पे क़ुर्बान जाइये;

    शायद हुज़ूर से कोई निस्बत हमें भी हो;
    आँखों में झाँक कर हमें पहचान जाइये।
    ~ Qateel Shifai
  • आज भड़की रग-ए-वहशत तेरे दीवानों की;
    क़िस्मतें जागने वाली हैं बयाबानों की;

    फिर घटाओं में है नक़्क़ारा-ए-वहशत की सदा;
    टोलियाँ बंध के चलीं दश्त को दीवानों की;

    आज क्या सूझ रही है तिरे दीवानों को;
    धज्जियाँ ढूँढते फिरते हैं गरेबानों की;

    रूह-ए-मजनूँ अभी बेताब है सहराओं में;
    ख़ाक बे-वजह नहीं उड़ती बयाबानों की;

    उस ने 'एहसान' कुछ इस नाज़ से मुड़ कर देखा;
    दिल में तस्वीर उतर आई परी-ख़ानों की।
    ~ Ehsaan Danish
  • मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला;
    साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला;

    मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक;
    दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला;

    बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं;
    वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला;

    उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर;
    मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला;

    एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए;
    ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला।
    ~ Saqi Faruqi
  • अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस;
    लब खोले और उसने कहा बस;

    तब से हालत ठीक नहीं है;
    मीठा मीठा दर्द उठा बस;

    सारी बातें खोल के रखो;
    मैं हूं तुम हो और खुदा बस;

    तुमने दुख में आंख भिगोई;
    मैने कोई शेर कहा बस;

    वाकिफ़ था मैं दर्द से उसके;
    मिल कर मुझसे फूट पड़ा बस;

    जाने भी तो बात हटाओ;
    तुम जीते मैं हार गया बस;

    इस सहरा में इतना कर दे;
    मीठा चश्मा,पेड़,हवा बस।
    ~ Ana Qasmi
  • तेरी सूरत जो दिलनशीं की है;
    आशना शक्ल हर हसीं की है;

    हुस्न से दिल लगा के हस्ती की;
    हर घड़ी हमने आतशीं की है;

    सुबह-ए-गुल हो की शाम-ए-मैख़ाना;
    मदह उस रू-ए-नाज़नीं की है;

    शैख़ से बे-हिरास मिलते हैं;
    हमने तौबा अभी नहीं की है;

    ज़िक्र-ए-दोज़ख़, बयान-ए-हूर-ओ-कुसूर;
    बात गोया यहीं कहीं की है;

    फ़ैज़ औज-ए-ख़याल से हमने;
    आसमां सिन्ध की ज़मीं की है।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • अब किस से कहें और कौन सुने जो हाल तुम्हारे बाद हुआ;
    इस दिल की झील सी आँखों में इक ख़्वाब बहुत बर्बाद हुआ;

    ये हिज्र-हवा भी दुश्मन है इस नाम के सारे रंगों की;
    वो नाम जो मेरे होंटों पे ख़ुशबू की तरह आबाद हुआ;

    उस शहर में कितने चेहरे थे कुछ याद नहीं सब भूल गए;
    इक शख़्स किताबों जैसा था वो शख़्स ज़बानी याद हुआ;

    वो अपने गाँव की गलियाँ थी दिल जिन में नाचता गाता था;
    अब इस से फ़र्क नहीं पड़ता नाशाद हुआ या शाद हुआ;

    बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में;
    ऐसा तो कभी सोचा भी न था अब जितना बेदाद हुआ।
    ~ Noshi Gilani
  • कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता;
    तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता;

    तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद;
    बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता;

    वो अगर आ न सके मौत ही आई होती;
    हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता;

    ज़िन्दगी कितनी मुसर्रत से गुज़रती या रब;
    ऐश की तरह अगर ग़म भी गवारा होता;

    अज़मत-ए-गिर्या को कोताह-नज़र क्या समझें;
    अश्क अगर अश्क न होता तो सितारा होता;

    कोई हम-दर्द ज़माने में न पाया 'अख़्तर';
    दिल को हसरत ही रही कोई हमारा होता।
    ~ Akhtar Sheerani