कभी तो सुब्ह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़, कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले; बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही, तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले! *कुंज-ए-लब: मुंह, मुंह का कोना *सर-ए-काकुल: बाल |
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का; मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में! |
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर; और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया! |
हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं, सुना जो तूने ब-दिल वो पयाम किस का था; उठाई क्यों न क़यामत अदू के कूचे में, लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था! *पुर्ज़े: टुकड़े टुकड़े *ब-दिल: दिल से *पयाम: संदेश *अदू: शत्रु *कूचे: गलियाँ |
ये जो सिर नीचे किए बैठे हैं; जान कितनों की लिए बैठे हैं! |
तेरा दीदार हो हसरत बहुत है; चलो कि नींद भी आने लगी है! |
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा; ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा! |
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो; और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो! |
एक बोसे के भी नसीब न हों; होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों! *बोसे: चुम्बन |
जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है, संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रखा है; उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी, नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है! |