तू इस क़दर मुझे... तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है; तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है; जिसे ना हुस्न से मतलब ना इश्क़ से सरोकार; वो शख्स मुझ को बहुत बदनसीब लगता है; हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा; ना कोई गैर, ना कोई रक़ीब लगता है; ये दोस्ती, ये मरासिम, ये चाहते ये खुलूस; कभी कभी ये सब कुछ अजीब लगता है; उफक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा; मुझे चिराग-ए-दयार-ए-हबीब लगता है; ना जाने कब कोई तूफान आयेगा यारो; बलंद मौज से साहिल क़रीब लगता है। |
अज़ाब ये भी किसी... अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया; कि एक उम्र चले और घर नहीं आया; इस एक ख़्वाब की हसरत में जल बुझीं आँखें; वो एक ख़्वाब कि अब तक नज़र नहीं आया; करें तो किस से करें ना-रसाइयों का गिला; सफ़र तमाम हुआ हम-सफ़र नहीं आया; दिलों की बात बदन की ज़बाँ से कह देते; ये चाहते थे मगर दिल इधर नहीं आया; अजीब ही था मेरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़; बिछड़ गया तो कभी लौट कर नहीं आया; हरीम-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी से निस्बतें भी रहीं; मगर सलीक़ा-ए-अर्ज़-ए-हुनर नहीं आया। |
ख़ातिर से तेरी याद को... ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते; सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते; आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते; अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते; किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल; तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते; परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले; क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते; हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना; दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते; दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त; हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते। |
हमारा दिल सवेरे का... हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए; चिरागों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए; मैं ख़ुद भी एहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ; कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए; अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर; मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए; समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको; हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए; मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा; परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए; उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो; न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए। |
दिल गया... दिल गया रौनक-ए-हयात गई; ग़म गया सारी कायनात गई; दिल धड़कते ही फिर गई वो नज़र; लब तक आई न थी कि बात गई; उनके बहलाए भी न बहला दिल; गएगां सइये-इल्तफ़ात गई; हाय सरशरायां जवानी की; आँख झपकी ही थी के रात गई; नहीं मिलता मिज़ाज-ए-दिल हमसे; ग़ालिबन दूर तक ये बात गई; क़ैद-ए-हस्ती से कब निजात 'जिगर'; मौत आई अगर हयात गई। |
दुनिया के ज़ोर... दुनिया के ज़ोर प्यार के दिन याद आ गये; दो बाज़ुओ की हार के दिन याद आ गये; गुज़रे वो जिस तरफ से बज़ाए महक उठी; सबको भरी बहार के दिन याद आ गये; ये क्या कि उनके होते हुए भी कभी-कभी; फ़िरदौस-ए-इंत्ज़ार के दिन याद आ गये; वादे का उनके आज खयाल आ गया मुझे; शक और ऐतबार के दिन याद आ गये; नादा थे जब्त-ए-गम का बहुत हज़रत-ए-'खुमार'; रो-रो जिए थे जब वो याद आ गये। |
ऐ सबा, लौट के... ऐ सबा, लौट के किस शहर से तू आती है; तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है; खून कहाँ बहता है इंसान का पानी की तरह; जिस से तू रोज़ यहाँ करके वजू आती है; धज्जियाँ तूने नकाबों की गिनी तो होंगी; यूँ ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है; अपने सीने में चुरा लाई है किस की आहें; मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है। |
इश्क़ करो तो ये भी सोचो... इश्क़ करो तो ये भी सोचो अर्ज़-ए-सवाल से पहले; हिज्र की पूरी रात आती है सुब्ह-ए-विसाल से पहले; दिल का क्या है दिल ने कितने मंज़र देखे लेकिन; आँखें पागल हो जाती है एक ख़याल से पहले; किस ने रेत उड़ाई शब में आँखें खोल के रखी; कोई मिसाल तो होना उस की मिसाल से पहले; कार-ए-मोहब्बत एक सफ़र है इस में आ जाता है; एक ज़वाल-आसार सा रस्ता बाब-ए-कमाल से पहले; इश्क़ में रेशम जैसे वादों और ख़्वाबों का रस्ता; जितना मुमकिन हो तय कर लें गर्द-ए-मलाल से पहले। |
बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ; हर एक जानिब तेरा ग़म है कभी मिलने चले आओ; हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है; हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ; मेरे हम-राह अगरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है; मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ; तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को; तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ; अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तनहा दिल; दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ; हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है; तेरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ। |
जब रूख़-ए-हुस्न से... जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा; बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा; डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती; दिल में तूफ़ान-ए-इजि़तराब उठा; मरने वाले फ़ना भी पर्दा है; उठ सके गर तो ये हिजाब उठा; शाहिद-ए-मय की ख़ल्वतों में पहुँच; पर्दा-ए-नशा-ए-शराब उठा; हम तो आँखों का नूर खो बैठे; उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा; होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान'; ला उठा शीशा-ए-शराब उठा। |