कभी बैठे सब में जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तुगू; वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो! |
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद; याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद! |
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था, सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है; ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़, वो तेरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है! |
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास; दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं! |
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें; इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं! *इल्म: ज्ञान *रिसाले: पत्रिकाओं |
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की |
अब तो हर बात याद रहती है; ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया! |
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का; जो पिछली रात से याद आ रहा है! |
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में; क्यों तेरी याद का बादल मेरे सिर पर आया! |
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी; कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो! |