Hindi Shayari

  • कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;<br/>
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!Upload to Facebook
    कोई चारा नहीं दुआ के सिवा;
    कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा!
    ~ Hafeez Jalandhari
  • मेरे गुनाह ज़्यादा हैं या तेरी रहमत;<br/>
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे!Upload to Facebook
    मेरे गुनाह ज़्यादा हैं या तेरी रहमत;
    करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे!
    ~ Muztar Khairabadi
  • तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है;<br/>
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है!Upload to Facebook
    तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है;
    तेरे आगे चाँद पुराना लगता है!
    ~ Kaif Bhopali
  • जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील';</br>
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया!Upload to Facebook
    जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील';
    मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया!
    ~ Shakeel Badayuni
  • पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी;</br>
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में!</br></br>
*तिश्नगी: प्यासUpload to Facebook
    पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी;
    साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में!

    *तिश्नगी: प्यास
    ~ Author Unknown
  • आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे;</br>
तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल-दान पर!Upload to Facebook
    आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे;
    तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल-दान पर!
    ~ Shakeb Jalali
  • अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है;</br>
इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है!Upload to Facebook
    अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है;
    इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है!
    ~ Divakar Rahi
  • हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर;</br>
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं!Upload to Facebook
    हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर;
    लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं!
    ~ Bismil Saeedi
  • रात आ कर गुज़र भी जाती है;</br>
एक हमारी सहर नहीं होती!Upload to Facebook
    रात आ कर गुज़र भी जाती है;
    एक हमारी सहर नहीं होती!
    ~ Ibn-e-Insha
  • मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए;</br>
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से!</br></br>
*इबारत: प्रतीकUpload to Facebook
    मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए;
    कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से!

    *इबारत: प्रतीक
    ~ Khwaja Mir Dard