कोई चारा नहीं दुआ के सिवा; कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा! |
मेरे गुनाह ज़्यादा हैं या तेरी रहमत; करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे! |
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है; तेरे आगे चाँद पुराना लगता है! |
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'; मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया! |
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी; साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में! *तिश्नगी: प्यास |
आज भी शायद कोई फूलों का तोहफ़ा भेज दे; तितलियाँ मंडरा रही हैं काँच के गुल-दान पर! |
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है; इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है! |
हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर; लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं! |
रात आ कर गुज़र भी जाती है; एक हमारी सहर नहीं होती! |
मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए; कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से! *इबारत: प्रतीक |