कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन; जब तक उलझे न काँटों से दामन! |
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम; आया भी और गया भी ज़माना बहार का! |
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ; अब तो ये बातें भी ऐ दिल हो गयी आई गई! |
सब कुछ हम उन से कह गए लेकिन ये इत्तेफ़ाक़; कहने की थी जो बात वही दिल में रह गई! |
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए; हम एक बार तेरी आरज़ू भी खो देते! |
ये इल्तिजा दुआ ये तमन्ना फ़िज़ूल है; सूखी नदी के पास समुंदर न जाएगा! |
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैंने; वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैंने! |
और तो क्या था बेचने के लिए; अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं! |
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में; मेरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं! |
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी; वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह! |