जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं; मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर! * जवाज़: जाइज़ होना |
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था; जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा! |
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं; ज़िंदगी तूने तो धोखे पे दिया है धोखा! |
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है; ज़िंदगी एक नज़्म लगती है! *नज़्म: कविता |
ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को; अपने अंदाज़ से गँवाने का! *फ़न: कला |
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा; आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी! *आह-ओ-ज़ारी: विलाप/शोक |
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है; ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है! |
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा; क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा! |
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें; इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो! |
ज़िंदगी एक हादसा है और कैसा हादसा; मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं! |