अन्य Hindi Shayari

  • अब आ गयी है सहर अपना घर सँभालने को;</br>
चलूँ कि जागा हुआ रात भर का मैं भी हूँ!Upload to Facebook
    अब आ गयी है सहर अपना घर सँभालने को;
    चलूँ कि जागा हुआ रात भर का मैं भी हूँ!
    ~ Irfan Siddiqi
  • सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा;</br>
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर!Upload to Facebook
    सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा;
    मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवाँ होने की ख़ातिर!
    ~ Zafar Iqbal
  • जितनी बँटनी थी बँट चुकी ये ज़मीन;</br>
अब तो बस आसमान बाक़ी है!Upload to Facebook
    जितनी बँटनी थी बँट चुकी ये ज़मीन;
    अब तो बस आसमान बाक़ी है!
    ~ Rajesh Reddy
  • दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था;</br>
तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था!Upload to Facebook
    दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था;
    तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था!
    ~ Azhar Faragh
  • हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं;</br>
एक दूजे को वक़्त नहीं दे पाते हैं!Upload to Facebook
    हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं;
    एक दूजे को वक़्त नहीं दे पाते हैं!
    ~ Fariha Naqvi
  • चिराग घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का;</br>
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती!</br></br>
*मस्लहत: भला बुरा देख कर काम करनाUpload to Facebook
    चिराग घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का;
    हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती!

    *मस्लहत: भला बुरा देख कर काम करना
    ~ Wasim Barelvi
  • चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है;</br>
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!Upload to Facebook
    चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है;
    मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!
    ~ Munawwar Rana
  • ख़्वाब होते हैं देखने के लिए;</br>
उन में जा कर मगर रहा न करो!Upload to Facebook
    ख़्वाब होते हैं देखने के लिए;
    उन में जा कर मगर रहा न करो!
    ~ Munir Niazi
  • मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का;</br>
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है!Upload to Facebook
    मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का;
    मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है!
    ~ Bashir Badr
  • अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है;</br>
इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है!Upload to Facebook
    अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है;
    इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है!
    ~ Divakar Rahi