ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तुझ से अब और मोहब्बत...

    तुझ से अब और मोहब्बत नहीं की जा सकती;
    ख़ुद को इतनी भी अज़िय्यत नहीं दी जा सकती;

    जानते हैं कि यक़ीं टूट रहा है दिल पर;
    फिर भी अब तर्क ये वहशत नहीं की जा सकती;

    हवस का शहर है और उस में किसी भी सूरत;
    साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती;

    रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है;
    शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती;

    इश्क़ ने हिज्र का आज़ार तो दे रखा है;
    इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती।
    ~ Noshi Gilani
  • तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ;
    मेरे यक़ीं में गश्त कर मेरी हद-ए-गुमाँ में आ;

    नींदों में दौड़ता हुआ तेरी तरफ़ निकल गया;
    तू भी तो एक दिन कभी मेरे हिसार-ए-जाँ में आ;

    इक शब हमारे साथ भी ख़ंजर की नोक पर कभी;
    लर्ज़ीदा चश्म-ए-नम में चल जलते हुए मकाँ में आ;

    नर्ग़े में दोस्तों के तू कब तक रहेगा सुर्ख़-रू;
    नेज़ा-ब-नेज़ा दू-ब-दू-सफ़्हा-ए-दुश्मनान में आ;

    इक रोज़ फ़िक्र-ए-आब-ओ-नाँ तुझ को भी हो जान-ए-जहाँ;
    क़ौस-ए-अबद को तोड़ कर इस अर्सा-ए-ज़ियाँ में आ।
    ~ Atiqullah
  • छेड़ने का तो मज़ा तब है कहो और सुनो;
    बात में तुम तो ख़फ़ा हो गये, लो और सुनो;

    तुम कहोगे जिसे कुछ, क्यूँ न कहेगा तुम को;
    छोड़ देवेगा भला, देख तो लो, और सुनो;

    यही इंसाफ़ है कुछ सोचो तो अपने दिल में;
    तुम तो सौ कह लो, मेरी एक न सुनो और सुनो;

    आफ़रीं तुम पे, यही चाहिए शाबाश तुम्हें;
    देख रोता मुझे यूँ हँसने लगो और सुनो;

    बात मेरी नहीं सुनते जो अकेले मिल कर;
    ऐसे ही ढँग से सुनाऊँ के सुनो और सुनो।
    ~ Insha Allah Khan Insha
  • अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा;
    लो हम भी न बोलेंगे ख़ुदा की क़सम अच्छा;

    मश्ग़ूल क्या चाहिए इस दिल को किसी तौर;
    ले लेंगे ढूँढ और कोई यार हम अच्छा;

    गर्मी ने कुछ आग और ही सीने में लगा दी;
    हर तौर घरज़ आप से मिलना है कम अच्छा;

    अग़ियार से करते हो मेरे सामने बातें;
    मुझ पर ये लगे करने नया तुम सितम अच्छा;

    कह कर गए आता हूँ, कोई दम में मैं तुम पास;
    फिर दे चले कल की सी तरह मुझको दम अच्छा;

    इस हस्ती-ए-मौहूम से मैं तंग हूँ 'इंशा';
    वल्लाह के उस से दम अच्छा।
    ~ Ibn-e-Insha
  • पूछा किसी ने हाल...

    पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए;
    पानी के अक्स चाँद का देखा तो रो दिए;

    नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए;
    ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए;

    उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर;
    अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए;

    बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए;
    साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए;

    रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई;
    'साग़र' हमारे हाथ से छलका तो रो दिए।
    ~ Saghar Siddiqui
  • पहले सौ बार...

    पहले सौ बार इधर और उधर देखा है;
    तब कहीं डर के तुम्हें एक नज़र देखा है;

    हम पे हँसती है जो दुनियाँ उसे देखा ही नहीं;
    हम ने उस शोख को अए दीदा-ए-तर देखा है;

    आज इस एक नज़र पर मुझे मर जाने दो;
    उस ने लोगों बड़ी मुश्किल से इधर देखा है;

    क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना;
    मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है।
    ~ Majrooh Sultanpuri
  • देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना;
    शेवा-ए-इश्क़ नहीं हुस्न को रुसवा करना;

    एक नज़र ही तेरी काफ़ी थी कि आई राहत-ए-जान;
    कुछ भी दुश्वार न था मुझ को शकेबा करना;

    उन को यहाँ वादे पे आ लेने दे ऐ अब्र-ए-बहार;
    जिस तरह चाहना फिर बाद में बरसा करना;

    शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रख ले;
    दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना;

    कुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है 'हसरत';
    उन से मिलकर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना।
    ~ Hasrat Mohani
  • रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं...

    रुस्वाइयाँ ग़ज़ब की हुईं तेरी राह में;
    हद है कि ख़ुद ज़लील हूँ अपनी निगाह में;

    मैं भी कहूँगा देंगे जो आज़ा गवाहियाँ;
    या रब यह सब शरीक थे मेरे गुनाह में;

    थी जुज़वे-नातवाँ किसी ज़र्रे में मिल गई;
    हस्ती का क्या वजूद तेरी जलवागाह में;

    ऐ 'शाद' और कुछ न मिला जब बराये नज़्र;
    शर्मिंदगी को लेके चले बारगाह में।
    ~ Shaad Azimabadi
  • इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के;
    आज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों के;

    खल्वतों के शैदाई खल्वतों में खुलते हैं;
    हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दादारों के;

    पहले हँस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैं;
    आश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दियारों के;

    तुमने सिर्फ चाहा है हमने छू के देखे हैं;
    पैरहन घटाओं के, जिस्म बर्क-पारों के;

    शगले-मयपरस्ती गो जश्ने-नामुरादी है;
    यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के।
    ~ Sahir Ludhianvi
  • कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे;
    जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे;

    उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा;
    यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे;

    बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो;
    दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे;

    मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे;
    यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे;

    यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की;
    वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे।
    ~ Jon Elia