ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोई; इसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोई; ये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री; दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोई; हो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचा; आपकी तरह से मेहमान बुलाए कोई; तर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसे; करके एहसान, न एहसान जताए कोई; क्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़; मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोई; सर्द-मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्द; रखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोई; आपने 'दाग़' को मुँह भी न लगाया, अफ़सोस; उसको रखता था कलेजे से लगाए कोई। |
तुम न आये एक दिन... तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलक; हम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलक; दर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिन; रहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलक; देखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्त; रहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलक; गर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बाद; तो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलक; क्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइये; घर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक। |
मै यह नहीं कहता कि मेरा सर न मिलेगा; लेकिन मेरी आँखों में तुझे डर न मिलेगा; सर पर तो बिठाने को है तैयार जमाना; लेकिन तेरे रहने को यहाँ घर न मिलेगा; जाती है, चली जाये, ये मैखाने कि रौनक; कमज़र्फो के हाथो में तो सागर न मिलेगा; दुनिया की तलब है, कनाअत ही न करना कतरे ही से खुश हो, तो समन्दर न मिलेगा। |
न आते हमें इसमें तकरार क्या थी; मगर वादा करते हुए आर क्या थी; तुम्हारे पयामी ने ख़ुद राज़ खोला; ख़ता इसमें बन्दे की सरकार क्या थी; भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा; तेरी आँख मस्ती में होशियार क्या थी; तअम्मुल तो था उनको आने में क़ासिद; मगर ये बता तर्ज़े-इन्कार क्या थी; खिंचे ख़ुद-ब-ख़ुद जानिबे-तूर मूसा; कशिश तेरी ऐ शौक़े-दीदाए क्या थी; कहीं ज़िक्र रहता है 'इक़बाल' तेरा; फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी। |
तेरे कमाल की हद तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा; उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा; कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम; ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा; पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा; कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा; न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब; मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा। |
एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया; वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया; यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं; तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया; उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा; उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया; दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत; लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया; अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है; पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया; अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई; रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया। |
मैं खुद भी सोचता हूँ... मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है; जिसका जवाब चाहिए, वो क्या सवाल है; घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था; क्या मुझसे खो गया है, मुझे क्या मलाल है; आसूदगी से दिल के सभी दाग धुल गए; लेकिन वो कैसे जाए, जो शीशे में बल है; बे-दस्तो-पा हू आज तो इल्जाम किसको दूँ; कल मैंने ही बुना था, ये मेरा ही जाल है; फिर कोई ख्वाब देखूं, कोई आरजू करूँ; अब ऐ दिल-ए-तबाह, तेरा क्या ख्याल है। |
मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना; तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना; तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई; तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना; शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो; अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना; तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते; पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना; इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का; तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना; अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी; तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना। |
वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआ; देखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआ; तकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब से; रिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआ; होठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करे; वो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआ; कल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयी; देखा था खुद ये सानिहा, लगता है जो सुना हुआ; पैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयी; जीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ। |
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए; वो फूल क्या हुए वो सितारे कहाँ गए; यारान-ए-बज़्म जुरअत-ए-रिंदाना क्या हुई; उन मस्त अँखड़ियों के इशारे कहाँ गए; एक और दौर का वो तक़ाज़ा किधर गया; उमड़े हुए वो होश के धारे कहाँ गए; दौरान-ए-ज़लज़ला जो पनाह-ए-निगाह थे; लेटे हुए थे पाँव पसारे कहाँ गए; बाँधा था क्या हवा पे वो उम्मीद का तिलिस्म; रंगीनी-ए-नज़र के ग़ुबारे कहाँ गए; बे-ताब तेरे दर्द से थे चाराग़र 'हफ़ीज'; क्या जानिए वो दर्द के मारे कहाँ गए। |