दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे; मैंने जब की आह उस ने वाह की! |
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है; दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है! * हया: शर्म * क़ज़ा: मृत्यु |
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी; कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो! |
मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनी; न जाने हुस्न क्यों इतरा रहा है! |
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना; दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है! |
ये पानी ख़ामोशी से बह रहा है; इसे देखें कि इस में डूब जाएँ! |
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें; क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यों नहीं जाता! |
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ; ख़ुद से मिलना मेरा एक शख़्स के खोने से हुआ! |
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़; अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़! |
एक हसीन आँख के इशारे पर; क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं! |