ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़; मुझ को आदत है मुस्कुराने की! |
कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन; जब तक उलझे न काँटों से दामन! |
कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा; मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा! |
घूम रहा हूँ तेरे ख़्यालों में; तुझ को आवाज़ उम्र भर दी है! |
तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम; आया भी और गया भी ज़माना बहार का! |
आते आते मेरा नाम सा रह गया; उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया! |
कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँ ही आँखें; उदास होने का कोई सबब नहीं होता! |
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है; तुम ने देखा नहीं आँखों का समंदर होना! |
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद; अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता! |
एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है; सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है! |