ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को; वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता! *बहर-ए-बे-कराँ: बिना किनारे का समुद्र |
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना; वस्ल से इंतज़ार अच्छा था! *वस्ल: मिलन |
लहजा कि जैसे सुब्ह की ख़ुश्बू अज़ान दे; जी चाहता है मैं तेरी आवाज़ चूम लूँ! |
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यों हो; ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं! |
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए; तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया! |
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में; क्यों तेरी याद का बादल मेरे सिर पर आया! |
अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को; तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं! |
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है; ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है! |
सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ; जवाब आज भी हम सोच कर नहीं आए! |
मेरी मजबूरियाँ क्या पूछते हो; कि जीने के लिए मजबूर हूँ मैं! |