ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक; मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे! *अदा-ए-बे-नियाज़ी: लापरवाही की हवा |
ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो, ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो; ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो, हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो! *मय: शराब |
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा; मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है! |
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन; दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है! |
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन, कोई तस्वीर गाती रही रात भर; फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले, कोई किस्सा सुनाती रही रात भर! *पैरहन: वस्त्र *सबा: सुबह की हवा |
ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो; मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी! |
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर; पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर! |
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो, दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो; आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में, कूच का ऐलान होने को है तैयारी रखो! |
ये कैसा नशा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ; तू आ के जा भी चुका है मैं इंतज़ार में हूँ! |
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार; एक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है! *हिज्र: जुदाई *वस्ल: मिलन *दरकार: आवश्यकता |