ढल चुकी रात मुलाक़ात कहाँ सो जाओ; सो गया सारा जहाँ सारा जहाँ सो जाओ! |
बहुत अज़ीज़ न क्यों हो कि दर्द है तेरा; ये दर्द बढ़ के रहा इज़्तिराब हो के रहा! |
दर्द का ज़ायका बताऊँ क्या; ये इलाक़ा ज़ुबान से बाहर है! |
दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'; दर्द ख़ुद चारा साज़ हो जाए! *अख़्तर: तारा, सितारा, क़िस्मत |
"शहर में अपने ये लैला ने मुनादी कर दी, कोई पत्थर से न मारे मेंरे दीवाने को।" |
"ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने, लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।" |
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी; इंतेहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया! |
क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो; ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो। |
'मीर' अमदन भी कोई मरता है; जान है तो जहान है प्यारे। |
शब को मय ख़ूब पी, सुबह को तौबा कर ली; रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई। |