चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले; आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले! |
मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ; मेरे हमराह दरिया जा रहा है! |
दिल पर चोट पड़ी है तब तो आह लबों तक आई है; यूँ ही छन से बोल उठना तो शीशे का दस्तूर नहीं! |
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता; जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता! |
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही; दर्द कम हो या ज्यादा हो मगर हो तो सही! |
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर; दर्द का दिल दुखा दिया मैंने! |
दीया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है; चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है! |
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं; दिल हमेशा उदास रहता है! |
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के; वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के! * शब-ए-ग़म - ग़म/दुख की रात |
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत; देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम! |