दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजिये रिश्ता; दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए! |
ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन; सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर! *मुख़ालिफ़: विरोधी *शय: चीज़ |
जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा, पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो; इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ, डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो; *जस्ता: उछला हुआ *बाब: द्वार *ज़ेर-ए-आब: पानी के नीचे *मज़ामीन-ए-वफ़ा: निरंतरता के विषय |
ग़ज़ब किया तेरे वादे पे ऐतबार किया; तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया! |
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप; और ये रात अपनी चादर है! *पैरहन: पहनने के कपड़े |
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा, ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है; बुत भी रखे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं, दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है! *बुत: मूर्तियों *अदा: चुकाना |
हम तो रात का मतलब समझें ख़्वाब, सितारे, चाँद, चिराग; आगे का अहवाल वो जाने जिस ने रात गुज़ारी हो! *अहवाल: परिस्थिति |
वैसे तो एक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए; ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता! |
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है, दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है; करते हैं जिस पे तान कोई जुर्म तो नहीं, शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है! *इकराम: इनाम *दुश्नाम: अपशब्द |
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रखा है कि मैं; मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं! |