अन्य Hindi Shayari

  • दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो;</br>
हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले!Upload to Facebook
    दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो;
    हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले!
    ~ Shehzad Ahmed
  • हम तो बचपन में भी अकेले थे;</br>
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे!Upload to Facebook
    हम तो बचपन में भी अकेले थे;
    सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे!
    ~ Javed Akhtar
  • शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को;</br>
मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को!Upload to Facebook
    शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को;
    मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को!
    ~ Shahryar
  • दुनिया तो चाहती है यूँ ही फ़ासले रहें;</br>
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल!Upload to Facebook
    दुनिया तो चाहती है यूँ ही फ़ासले रहें;
    दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल!
    ~ Habib Jalib
  • जिस ने कुछ एहसान किया एक बोझ सिर पर रख दिया;</br>
सिर से तिनका क्या उतारा सिर पे छप्पर रख दिया!Upload to Facebook
    जिस ने कुछ एहसान किया एक बोझ सिर पर रख दिया;
    सिर से तिनका क्या उतारा सिर पे छप्पर रख दिया!
    ~ Jalal Lakhnavi
  • ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता;</br>
अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है!Upload to Facebook
    ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता;
    अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है!
    ~ Akhtar Saeed Khan
  • मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी;</br>
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला!Upload to Facebook
    मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी;
    बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला!
    ~ Muztar Khairabadi
  • एक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए;</br>
जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए!Upload to Facebook
    एक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए;
    जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए!
  • आता है जो तूफ़ान आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है;</br>
मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए!Upload to Facebook
    आता है जो तूफ़ान आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है;
    मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए!
    ~ Behzad Lakhnawi
  • मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं,</br>
यही होता है ख़ानदान में क्या;</br>
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं,</br>
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या!Upload to Facebook
    मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं,
    यही होता है ख़ानदान में क्या;
    अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं,
    हम ग़रीबों की आन-बान में क्या!
    ~ Jaun Elia