दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो; हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले! |
हम तो बचपन में भी अकेले थे; सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे! |
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को; मैं देखता रहा दरिया तेरी रवानी को! |
दुनिया तो चाहती है यूँ ही फ़ासले रहें; दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल! |
जिस ने कुछ एहसान किया एक बोझ सिर पर रख दिया; सिर से तिनका क्या उतारा सिर पे छप्पर रख दिया! |
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता; अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है! |
मुसीबत और लंबी ज़िंदगानी; बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला! |
एक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए; जिस का हम-साए के आँगन में भी साया जाए! |
आता है जो तूफ़ान आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है; मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए! |
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं, यही होता है ख़ानदान में क्या; अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं, हम ग़रीबों की आन-बान में क्या! |