कौन कहे मासूम हमारा बचपन था; खेल में भी तो आधा आधा आँगन था! |
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें; इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो! |
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो; तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे! |
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय; नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है! |
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे; पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले! |
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना; मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने! |
यूँ जो तकता है आसमान को तू; कोई रहता है आसमान में क्या! |
आज की रात भी तन्हा ही कटी; आज के दिन भी अंधेरा होगा! |
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है; चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी! *तुर्बत: क़ब्र |
न कोई वादा न कोई यकीन न कोई उम्मीद; मगर हमें तो तेरा इंतज़ार करना था! |